Jay Jay Jag Janani Devi

पार्वती वन्दना जय जय जग-जननि देवि, सुर-नर-मुनि-असुर-सेवी भुक्ति-मुक्ति-दायिनि, भय-हरणि कालिका मंगल-मुद-सिद्धि-सदनि, पर्व शर्वरीश-वदनि ताप-तिमिर-तरुण-तरणि-किरण-पालिका वर्म-चर्म कर कृपाण, शूल-शेल धनुष बाण धरणि दलनि दानव दल रण करालिका पूतना-पिशाच-प्रेत-डाकिनी-शाकिनि समेत भूत-ग्रह-बेताल-खग-मृगाल-जालिका जय महेश-भामिनी, अनेक रूप नामिनी समस्त लोक स्वामिनी, हिम-शैल बालिका रघुपति-पद-परम प्रेम, ‘तुलसी’ यह अचल नेम देहु ह्वै प्रसन्न पाहि प्रणत-पालिका

Man Madhav Ko Neku Niharhi

हरि पद प्रीति मन माधव को नेकु निहारहि सुनु सठ, सदा रंक के धन ज्यों, छिन छिन प्रभुहिं सँभारहि सोभा-सील ज्ञान-गुन-मंदिर, सुन्दर परम उदारहि रंजन संत, अखिल अघ गंजन, भंजन विषय विकारहि जो बिनु जोग जग्य व्रत, संयम, गयो चहै भव पारहि तो जनि ‘तुलसिदास’ निसि वासर, हरिपद कमल बिसारहि

Jau Kahan Taji Charan Tumhare

रामाश्रय जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे कौनहुँ देव बड़ाइ विरद हित, हठि हठि अधम उधारे खग मृग व्याध, पषान, विटप जड़यवन कवन सुर तारे देव दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब माया-विवश बिचारे तिनके हाथ दास ‘तुलसी’ प्रभु, कहा अपुनपौ हारे

Mamta Tu N Gai Mere Man Te

वृद्ध अवस्था ममता तू न गई मेरे मन तें पाके केस जनम के साथी, लाज गई लोकन तें तन थाके कर कंपन लागे, ज्योति गई नैनन तें श्रवण वचन न सुनत काहू के, बल गये सब इन्द्रिन तें टूटे दाँत वचन नहिं आवत, सोभा गई मुखन तें भाई बंधु सब परम पियारे, नारि निकारत घर […]

Ab Lo Nasani

भजन के पद शुभ संकल्प अब लौं नसानी, अब न नसैंहौं राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैंहौं पायउँ नाम चारु चिंतामनि, उर करतें न खसैंहौं श्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैंहौं परबस जानी हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैंहौं मन मधुकर पन करके ‘तुलसी’, रघुपति पद-कमल बसैंहौं

Jaki Gati Hai Hanuman Ki

हनुमान आश्रय जाकी गति है हनुमान की ताकी पैज पूजि आई, यह रेखा कुलिस पषान की अघटि-घटन, सुघटन-विघटन, ऐसी विरुदावलि नहिं आन की सुमिरत संकट सोच-विमोचन, मूरति मोद-निधान की तापर सानुकूल गिरिजा, शिव, राम, लखन अरु जानकी ‘तुलसी’ कपि की कृपा-विलोकनि, खानि सकल कल्यान की

Meri Yah Abhilash Vidhata

अभिलाषा मेरी यह अभिलाष विधाता कब पुरवै सखि सानुकूल ह्वैं हरि सेवक सुख दाता सीता सहित कुसल कौसलपुरआय रहैं सुत दोऊ श्रवन-सुधा सम वचन सखी कब, आइ कहैगो कोऊ जनक सुता कब सासु कहैं मोहि, राम लखन कहैं मैया कबहुँ मुदित मन अजर चलहिंगे, स्याम गौर दोउ भैया ‘तुलसिदास’ यह भाँति मनोरथ करत प्रीति अति […]

Ese Ramdin Hitkari

हितकारी राम ऐसे राम दीन हितकारी अति कोमल करुना निधान बिनु कारन पर-उपकारी साधन हीन दीन निज अघ बस सिला भई मुनि नारी गृहते गवनि परसि पद-पावन घोर सापते तारी अधम जाति शबरी नारी जड़ लोक वेद ते न्यारी जानि प्रीत दै दरस कृपानिधि सोउ रघुनाथ उबारी रिपु को अनुज विभिषन निशिचर, कौन भजन अधिकारी […]

Jake Priy Na Ram Vedehi

राम-पद-प्रीति जाके प्रिय न राम वैदेही तजिये ताहि कोटि बैरीसम, जद्यपि परम सनेही तज्यो पिता प्रह्लाद, विभीषन बंधु, भरत महतारी बलि गुरु तज्यो, कंत ब्रज – बनितनि, भये मुद – मंगलकारी नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लौं अंजन कहाँ आँखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहाँ लौं ‘तुलसी’ सो सब भाँति परम हित […]

Mero Bhalo Kiya Ram, Apni Bhalai

उदारता मेरो भलो कियो राम, आपनी भलाई मैं तो साईं-द्रोही पै, सेवक- हित साईं रामसो बड़ो है कौन, मोसो कौन छोटो राम सो खरो है कौन, मोसो कौन खोटो लोक कहै रामको, गुलाम हौं कहावौं एतो बड़ो अपराध भौ न मन बावों पाथ-माथे चढे़तृन ‘तुलसी’ ज्यों नीचो बोरत न वारि ताहि जानि आपुसींचो