पार्वती वन्दना
जय-जय-जय गिरिराजकिशोरी
जय महेश मुखचंद्र चकोरी
जय गजवदन षडानन माता
जग-जननी दामिनि-द्युति दाता
नहिं तव आदि मध्य अवसाना
अमित प्रभाव वेद नहीं जाना
भव-भय-विभव पराभव कारिणि
विश्व-विमोहिनि स्वबस विहारिणि
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Apurva Nratya Hanuman Kare
मारुति-सुत का नृत्य
अपूर्व नृत्य हनुमान करें
है दिव्य देह, सिन्दूर लेप, करताल करो में चित्त हरें
आनन्दित मुख की श्रेष्ठ छटा, श्रीराम नाम का गान करें
चरणों में मोहक घुँघरू, दो नयनों से प्रेमाश्रु झरें
कटि में शोभित है रक्ताम्बर, अंजनी-सुत हम पर कृपा करें
Aaj Sakhi Raghav Ki Sudhi Aai
स्मृति
आज सखि! राघव की सुधि आई
आगे आगे राम चलत है, पीछे लक्ष्मण भाई
इनके बीच में चलत जानकी, चिन्ता अधिक सताई
सावन गरजे भादों बरसे,पवन चलत पुरवाई
कौन वृक्ष तल भीजत होंगे, राम लखन दोउ भाई
राम बिना मोरी सूनी अयोध्या, लक्ष्मण बिन ठकुराई
सीता बिन मोरी सूनी रसोई, महल उदासी छाई
Rishi Muni Sab Dev Pukar Rahe
परब्रह्म श्रीकृष्ण
ऋषि मुनि सब देव पुकार रहे, श्रीकृष्ण हरे गोविन्द हरे
उन विश्वंद्य का संकीर्तन हो आर्तवाणि से दु:ख टरे
असुरों के अत्याचारों से, हो रहा घना था धर्म-नाश
सब देव गये गोलोक धाम, जो है प्रसिद्ध श्रीकृष्ण-वास
इक दृश्य अलौकिक वहाँ देख, आश्चर्य चकित सब देव हुए
नारायण, नरसिंह, राम, हरि, श्री कृष्ण-तेज में समा गए
ऐश्वर्य, धर्म, वैराग्य, ज्ञान अरु श्री यश ये जो छः मग हैं
सिद्धियाँ अष्ट, लीला व कृपा, कुल सौलह कला उन्हीं में हैं
है दुर्गम जिनका चरित-सिंधु, उनको मैं सादर करूँ नमन
उनके चरणों में शरणागत, काटो मेरे माया-बंधन
Kalyan Mai Durga Devi
माँ दुर्गा स्तुति
कल्याणमयी दुर्गादेवी, मैया को मेरा नमस्कार
रक्ताम्बर से जो अंलकृता, गिरिराज सुता को नमस्कार
विष्णुमाया को नमस्कार, हे व्याधि-विनाशिनि नमस्कार
हे कार्तिकेय गणपति माता, चरणों में सादर नमस्कार
शिव वाम भाग में जो स्थित, कैलास-वासिनी नमस्कार
जो सभी प्राणियों में चेतन, उन सर्वव्यापी को नमस्कार
माँ जगन्मोहिनी जगदम्बे, ज्योत्स्नामयी को नमस्कार
हे दैत्यविनाशिनि दयामयी, दुर्गतिनाशिनि को नमस्कार
भगवान कृष्ण की अनुजा के, पावन चरणों में नमस्कार
Kyon Dhanya Grihasthashram Kahlata
धन्य गृहस्थाश्रम
क्यों धन्य गृहस्थाश्रम कहलाता
मानव जीवन के तीन लक्ष्य, धन, काम, धर्म वह पाता
सौमनस्य हो पति-पत्नी में, स्वर्ग बनाये घर को
परोपकार, परहित सेवा, कर्तव्य मिलादे हरि को
प्रभु का मंदिर समझे गृह को, भाव शुद्धता मन में
हरि-कीर्तन प्रातः सन्ध्या हो, व सदाचार जीवन में
पूजन एवं कृष्ण-कथा हो, साधु, सन्त सेवा हो
सभी तरह की परम शान्ति हो, प्रेम भाव सबसे हो
खान-पान परिशुद्ध रहे, हो अनासक्ति भोगों में
मात-पिता अरु पूज्य जनों प्रति, समुचित आदर मन में
वातावरण जहाँ ऐसा हो, स्वर्ग रूप घर होता
सुलभ वहाँ शाश्वत सुख सबको, वास प्रभु का होता
Chal Rahe Bakaiyan Manmohan
बालकृष्ण
चल रहे बकैयाँ मनमोहन, सन गये धूल में जो सोहन
जब नहीं दिखी मैया उनको किलकारी मारे बार बार
माँ निकट रसोईघर में थी, गोदी में लेकर किया प्यार
आँचल से अंगों को पोछा और दूध पिलाने लगी उन्हें
क्षीरोदधि में जो शयन करें, विश्वम्भर कहते शास्त्र जिन्हें
Chaitanya Swarup Hi Atma Hai
आत्मानुभूति
चैतन्य स्वरूप ही आत्मा है
यह शुद्ध देह का शासक है, अन्तःस्थित वही शाश्वत है
आत्मा शरीर को मान लिया, मिथ्या-विचार अज्ञान यही
यह देह मांसमय अपवित्र और नाशवान यह ज्ञान सही है
इच्छाओं का तो अन्त नहीं, मन में जिनका होता निवास
मृग-तृष्णा के ही तो सदृश, मानव आखिर होता निराश
यह राग द्वेष से भरा हुआ, संसार स्वप्नवत् नहीं टिकता
अज्ञान निवृत जब हो जाये, सारा प्रपंच ही मिट जाता
Jay Jayati Maruti Vir
श्री हनुमान स्तवनजय
जयति मारुति वीर जय शंकर सुवन हनुमान जय
असीम बल के धाम हो, कलि कुमति का हरते हो भय
उद्धार दीनों का किया, निर्बल जनों को बल दिया
तेरी शरण में जो गया, भव-ताप से वह बच गया
तुम शक्ति के आधार हो, बल ज्ञान के आकार हो
तुम राम के वर दूत हो, तुम आँजनेय सपूत हो
कलिकाल के भगवान हो, मेरे विकारों को हरो
तुम दुःखी जन के प्राण हो, मम पाप पुंज शमन करो
Jo Karna Ho Karlo Aaj Hi
वर्तमान
जो करना हो कर लो आज ही
अनुकूल समय का मत सोचो, मृत्यु का कुछ भी पता नहीं
चाहे भजन ध्यान या धर्म कार्य, इनमें विलम्ब हम नहीं करें
सत्कार्य जो सोचा हो मन में, कार्यान्वित वह तत्काल करे
वैभव नहिं शाश्वत, तन अनित्य, शुभ कर्मों में मन लगा रहे
कल करना हो वह आज करे, संभव शरीर कल नहीं रहे