Prabhu Ji Tumko Arpit Yah Jiwan

मेरी भावना प्रभुजी! तुमको अर्पित यह जीवन जीवन बीते सत्कर्मों में, श्रद्धा हो प्रभु की पूजा में करो हृदय में ध्यान सदा, लगूँ नहीं कभी दुष्कर्मों में इच्छा न जगे कोई मन में, प्रभु प्रेम-भाव से तृप्त रहूँ सुख दुख आये जो जीवन में, प्रभु का प्रसाद में जान गहूँ जो मात-पिता वे जीवन-धन, उनकी […]

Bhav Ke Bhukhe Prabhu Hain

भाव के भूखे भाव के भूखे प्रभु हैं, भाव ही तो सार है भाव से उनको भजे जो, उसका बेड़ा पार है वस्त्र भूषण या कि धन हो, सबके दाता तो वही अर्पण करें सर्वस्व उनको, भाव तो सच्चा यही भाव से हम पत्र, जल या पुष्प उनको भेंट दे स्वीकारते उसको प्रभु, भव-निधि से […]

Rasiya Ko Nar Banao Ri

होली रसिया को नार बनाओ री, रसिया को कटि लहँगा, उर माँहि कंचुकी, चूनर आज ओढ़ाओरी बिंदी भाल नयन में कजरा, नक बेसर पहनाओरी सजा धजा जसुमति के आगे, याको नाच नचाओरी होरी में न लाज रहे सखियाँ, मिल कर के आज चिढ़ाओरी 

Vrat Snan Pratishtha Pujanadi

शालिग्राम महात्म्य व्रत स्नान प्रतिष्ठा पूजनादि, जो कर्म करें हम श्रद्धा से जहाँ शालिग्राम की सन्निद्धि हो, तो पुण्य अपार मिले इससे जल शालिग्राम शिला का हो, उसका जो पान करे नित ही वर पाता है वह मनवांछित, इसमें तो संशय तनिक नहीं मृत्यु के समय जलपान करे, पापों से मुक्त वह हो जाता जो […]

Sab Se Bada Dharma Ka Bal Hai

धर्म निष्ठा सबसे बड़ा धर्म का बल है वह पूजनीय जिसको यह बल, जीवन उसका ही सार्थक है ऐश्वर्य, बुद्धि, विद्या, धन का, बल होता प्रायः लोगों को चाहे शक्तिमान या सुन्दर हो, होता है अहंकार उसको इन सबसे श्रेष्ठ धर्म का बल, भवसागर से जो पार करे जिस ओर रहे भगवान् कृष्ण, निश्चय ही […]

Kuch Lena Na Dena Magan Rahna

आत्मानंद कछु लेना न देना मगन रहना पाँच तत्त्व का बना पींजरा, जामे बोलत मेरी मैना गहरी नदिया नाव पुरानी, केवटिया से मिले रहना तेरा पीया तेरे घट में बसत है, सखी खोल कर देखो नैना कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, गुरु-चरण में लिपट रहना

Man Fula Fula Fire Jagat Main Kaisa Nata Re

असार संसार मन फूला-फूला फिरे जगत में कैसा नाता रे मात कहै यह पुत्र हमारा, बहन कहै वीर मेरा रे भाई कहै यह भुजा हमारी, नारी कहै नर मेरा रे पेट पकड़ के माता रोवे, बाँह पकड़ के भाई रे लपटि झपटि के तिरिया रोवे, हंस अकेला जाई रे चार गजी चादर मँगवाई, चढ़ा काठ […]

Man Tu Kahe Bhayo Achet

प्रबोधन मन! तू काहे भयो अचेत भटकत रह्यो व्यर्थ में अब तक, कियो न हरि से हेत पायो मानुष-जन्म हाय! तू ताहि वृथा कर देत अरे भूलि हीरा कों बौरे, करत काँच सो हेत प्राननाथ सों प्रीति न करि तू, पूजत पामर प्रेत सुमिर सुमिर रे! सदा स्याम को, संतत स्नेह समेत

Antaryami Ko Pahchano

अन्तरवृत्ति अन्तर्यामी को पहचानो मन में होय उजेरा क्रोध लोभ मद अहंकार ने, मानव जीवन घेरा हुए मोह से ग्रस्त सभी जन, छाया घना अँधेरा यौवन बीता, समय जा रहा, किन्तु विवेक न जागा जिसने संग किया संतों का, तमस हृदय का भागा

Uth Jaag Musafir Bhor Bhai

चेतावनी उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है अब नींद से अँखियाँ खोल जरा, ओ बेसुध प्रभु से ध्यान लगा यह प्रीति करन की रीति नहीं, सब जागत है तू सोवत है नादान, भुगत करनी अपनी, ओ पापी पाप […]