Ab Lo Nasani

भजन के पद
शुभ संकल्प
अब लौं नसानी, अब न नसैंहौं
राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैंहौं
पायउँ नाम चारु चिंतामनि, उर करतें न खसैंहौं
श्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैंहौं
परबस जानी हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैंहौं
मन मधुकर पन करके ‘तुलसी’, रघुपति पद-कमल बसैंहौं

Jagiya Raghunath Kunwar Panchi Van Bole

प्रभाती
जागिये रघुनाथ कुँवर, पँछी वन बोले
चन्द्र किरन शीतल भई, चकई पिय मिलन गई
त्रिविध मंद चलत पवन, पल्लव द्रुम डोले
प्रात भानु प्रगट भयो, रजनी को तिमिर गयो
भृंग करत गुंजगान कमलन दल खोले
ब्रह्मादिक धरत ध्यान, सुर नर मुनि करत गान
जागन की बेर भई, नयन पलक खोले

Mero Bhalo Kiya Ram, Apni Bhalai

उदारता
मेरो भलो कियो राम, आपनी भलाई
मैं तो साईं-द्रोही पै, सेवक- हित साईं
रामसो बड़ो है कौन, मोसो कौन छोटो
राम सो खरो है कौन, मोसो कौन खोटो
लोक कहै रामको, गुलाम हौं कहावौं
एतो बड़ो अपराध भौ न मन बावों
पाथ-माथे चढे़तृन ‘तुलसी’ ज्यों नीचो
बोरत न वारि ताहि जानि आपुसींचो

Aaj Grah Nand Mahar Ke Badhai

जन्मोत्सव
आज गृह नंद महर के बधाई
प्रात समय मोहन मुख निरखत, कोटि चंद छवि छाई
मिलि ब्रज नागरी मंगल गावति, नंद भवन में आई
देति असीस, जियो जसुदा-सुत, कोटिन बरस कन्हाई
अति आनन्द बढ्यौ गोकुल में, उपमा कही न जाई
‘सूरदास’ छवि नंद की घरनी, देखत नैन सिराई

Kahiya Jasumati Ki Aasis

वियोग
कहियो जसुमति की आसीस
जहाँ रहौ तहँ नंद – लाडिलौ, जीवौ कोटि बरीस
मुरली दई दोहनी घृत भरि ऊधौ धरि लई सीस
इह घृत तो उनही सुरभिन को, जो प्यारी जगदीस
ऊधौ चलत सखा मिलि आये, ग्वाल-बाल दस-बीस
अब के इहाँ ब्रज फेरि बसावौ, ‘सूरदास’ के ईस

Chadi Man Hari Vimukhan Ko Sang

प्रबोधन
छाड़ि मन, हरि-विमुखन को संग
जिनके संग कुमति उपजत है, परत भजन में भंग
कहा होत पय-पान कराए, विष नहिं तजत भुजंग
कागहिं कहा कपूर चुगाए, स्वान न्हवाए गंग
खर कौं कहा अरगजा-लेपन मरकट भूषन अंग
गज कौं कहा सरित अन्हवाए, बधुरि धरै वह ढंग
पाहन पतित बान नहिं बेधत, रीतो करत निषंग
‘सूरदास’ कारी कामरि पै, चढ़त न दूजौ रंग

Jo Tu Krishna Nam Dhan Dharto

नाम महिमा
जो तूँ कृष्ण नाम धन धरतो
अब को जनम आगिलो तेरो, दोऊ जनम सुधरतो
जन को त्रास सबै मिटि जातो, भगत नाँउ तेरो परतो
‘सूरदास’ बैकुण्ठ लोक में, कोई न फेंट पकरतो

Deh Dhare Ko Karan Soi

अभिन्नता
देह धरे कौ कारन सोई
लोक-लाज कुल-कानि न तजिये, जातौ भलो कहै सब कोई
मात पित के डर कौं मानै, सजन कहै कुटुँब सब सोई
तात मात मोहू कौं भावत, तन धरि कै माया बस होई
सुनी वृषभानुसुता! मेरी बानी, प्रीति पुरातन राखौ गोई
‘सूर’ श्याम नागारिहि सुनावत, मैं तुम एक नाहिं हैं दोई

Pratham Saneh Duhun Man Janyo

राधे श्याम मिलन
प्रथम सनेह दुहुँन मन जान्यो
सैन-सैन कीनी सब बातें, गुपत प्रीति सिसुता प्रगटान्यो
खेलन कबहुँ हमारे आवहु, नंद-सदन ब्रज – गाँउँ
द्वारे आइ टेरि मोहि लीजो, कान्ह है मेरो नाउँ
जो कहियै घर दूरि तुम्हारो, बोलत सुनियै टेर
तुमहिं सौंह वृषभानु बबा की, प्रात-साँझ इक फेर
सूधी निपट देखियत तुमकों, तातें करियत साथ
‘सूर’ श्याम नागर उत नागरि, राधा दोऊ मिलि साथ

Bharosa Dradh In Charanan Kero

शरणागति
भरोसो दृढ़ इन चरणन केरो
श्री वल्लभ नख-चन्द्र छटा बिनु, सब जग माँझ अँधेरो
साधन और नहीं या कलि में, जासो होत निबेरो
‘सूर’ कहा कहैद्विविध आँधरो, बिना मोल को चेरो