Pragati Anup Rup Vrashbhanu

श्री राधा प्राकट्य प्रगटी अनूप रूप, वृषभानु की दुलारी राधा शुचि मधुर-मधुर, कीर्तिदा-कुमारी चंद्र-वदन रूप सौम्य, दोऊ कर-कमल मधुर विशद नयन-कमल मधुर, आनँद विस्तारी अरुन चरन-पद्म सदृश, भौंह मधुर भाव मधुर अधरनि मुसकान मधुर, सरवस बलिहारी आए तहँ दरसन हित, शिव, ऋषि व्रतधारी रासेश्वरि श्री राधा के, कान्हा की प्यारी  

Pragati Nagari Rup Nidhan

श्री राधा प्राकट्य प्रगटी नागरि रूप-निधान निरख निरख सब कहे परस्पर, नहिं त्रिभुवन में आन कृष्ण-प्रिया का रूप अद्वितीय, विधि शिव करे बखान उपमा कहि कहि कवि सब हारे, कोटि कोटि रति-खान ‘कुंभनदास’ लाल गिरधर की, जोरी सहज समान  

Braj Main Ghar Ghar Bajat Badhai

श्री राधा प्राकट्य ब्रिज में घर घर बजत बधाई अतिशय रूप निरख कन्या का माँ कीरति है हर्षाई सकल लोक की सुंदरता, वृषभानु गोप के आई जाको जस सुर मुनी सब कोई, भुवन चतुर्दश गाई नवल-किशोरी गुन निधि श्यामा, कमला भी ललचाई प्रगटे पुरुषोत्तम श्री राधा द्वै विधि रूप बनाई