प्रभाती
जागिये रघुनाथ कुँवर, पँछी वन बोले
चन्द्र किरन शीतल भई, चकई पिय मिलन गई
त्रिविध मंद चलत पवन, पल्लव द्रुम डोले
प्रात भानु प्रगट भयो, रजनी को तिमिर गयो
भृंग करत गुंजगान कमलन दल खोले
ब्रह्मादिक धरत ध्यान, सुर नर मुनि करत गान
जागन की बेर भई, नयन पलक खोले

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