राम का माधुर्य
कब देखौंगी नयन वह मधुर मूरति
राजिव दल नयन, कोमल-कृपा अयन, काम बहु छबि अंगनि दूरति
सिर पर जटा कलाप पानि सायक चाप उर रुचिर वनमाल मूरति
‘तुलसिदास’ रघुबीर की सोभा सुमिरि, भई मगन, नहीं तन की सूरति

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *