शबरी का प्रेम
कुटिया पर राघव आये तो, शबरी की साधना पूर्ण हुई
तन मन की सुधि वह भूल गई, प्रभु के चरणों में लिपट गई
आसन देकर वह रघुवर को, छबड़ी में बेरों को लाई
चख चख कर मीठे बेर तभी, राघव को दे मन हर्षाई
यह स्नेह देख कर शबरी का, निज माँ की याद त्वरित आई
होकर प्रसन्न तब तो प्रभु ने, निज धाम में उसको भेज दिया
इस भाँति अनेकों भक्तों का, करुणानिधि ने कल्याण किया 

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