शबरी का प्रेम
प्रेम-वस्त्र के बिछा पाँवड़े, अर्घ्य नमन जल देकर
निज कुटिया पर लाई प्रभु को, चरण कमल तब धोकर
आसन प्रस्तुत कर राघव को, पूजा फिर की शबरी ने
चख कर मीठे बेर प्रभु को, भेंट किये भिलनी ने
स्वाद सराहा प्रभु ने फल का, प्रेम से भोग लगाया
प्रेम-लक्षणा-भक्ति रूप, फल प्रभु से उसने पाया

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