राम आरती
रघुनन्दन की आरती कीजै, दिव्य स्वरूप बसा मन लीजै
पीताम्बर अद्वितीय कलेवर, संग जानकी माता सोहे
धनुष बाण धारे जगदीश्वर, भरत, लखन, रिपुसूदन मोहे
वैदेही लक्ष्मण है सँग में, राघवेन्द्र वनवास पधारे
ॠषि, मुनि, शबरी दर्शन पाये, खरदूषण राक्षस संहारे
साधुवेष धर रावण पहुँचा, वैदेही को तभी चुराया
रावणादि को मार युद्ध में, पृथ्वी का सब भार मिटाया
सकुशल लौट अवध सब आये, राम राज्य हो गया धरा पर
भक्ति दान दीजै प्रभु विनती, करुणा-निधि श्री राम कृपा कर

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