Bansiwala Aajo Mhare Des

विरह व्यथा बंसीवाला आजो म्हारे देस, थाँरी साँवरी सूरति वालो भेष आऊगा कह गया साँवरा, कर गया कौल अनेक गणता गणता घिस गई म्हारी, आँगुलिया की रेख तेरे कारण साँवराजी, धर लियो जोगण भेष ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, आओ मिटे कलेस