राम की उदारता
ऐसो को उदार जग माहीं
बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर, राम सरिस कोउ नाहीं
जो गति जोग बिराग जतन करि, नहिं पावत मुनि ग्यानी
सो गति देत गीध सबरी कहँ, प्रभु न बहुत जिय जानी
जो संपत्ति दस सीस अरपि करि रावन सिव पहँ लीन्हीं
सोई संपदा विभीषन कहँअति, सकुच सहित हरि दीन्हीं
‘तुलसिदास’ सब भांति सकल सुख, जो चाहसि मन मेरो
तौ भजु राम, काम सब पूरन करैं कृपानिधि तेरो
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Nahi Aiso Janam Barambar
नश्वर जीवन
नहीं ऐसो जनम बारम्बार
क्या जानूँ कछु पुण्य प्रगटे, मानुसा अवतार
बढ़त पल पल घटत छिन-छिन, जात न लागे वार
बिरछ के ज्यों पात टूटैं, लगे नहीं पुनि डार
भौसागर अति जोर कहिये, विषय ऊँडी धार
राम नाम का बाँध बेड़ा, उतर परले पार
साधु संत महन्त ज्ञानी, चालत करत पुकार
दासी मीराँ लाल गिरिधर, जीवणाँ दिन चार