Bansiwala Aajo Mhare Des

विरह व्यथा बंसीवाला आजो म्हारे देस, थाँरी साँवरी सूरति वालो भेष आऊगा कह गया साँवरा, कर गया कौल अनेक गणता गणता घिस गई म्हारी, आँगुलिया की रेख तेरे कारण साँवराजी, धर लियो जोगण भेष ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, आओ मिटे कलेस

Bansiwala Sanwariya Aaja Re

निमंत्रण बंसीवाला साँवरिया आजा रे बिन देखे नहीं चैन पड़त है, चाँद सा मुखड़ा दिखाजा रे मोर मुकुट पीतांबर सोहे, मुरली की टेर सुनाजा रे दधि माखन घर में बहु मेरे, जो चाहे सोइ खाजा रे ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, मोहनी मूरत दिखाजा रे