Daras Bina Dukhan Lage Nain

विरह व्यथा दरस बिन दूखँण लागै नैन जब से तुम बिछुड़े मेरे प्रभुजी, कबहुँ न पायो चैन सबद सुनत मेरी छतियाँ काँपें, कड़वे लागै बैन विरह कथा कासूँ कहुँ सजनी, बह गई करवत ऐन कल न परत, हरि को मग जोवत, भई छमासी रैन ‘मीरा’ के प्रभु कबरे मिलोगे, दुख मेटण सुख दैन

Daras Mhane Bega Dijyo Ji

विरह व्यथा दरस म्हाने बेगा दीज्यो जी, खबर म्हारी बेगी लीज्यो जी आप बिना मोहे कल न पड़त है, म्हारा में गुण एक नहीं है जी तड़पत हूँ दिन रात प्रभुजी, सगला दोष भुला दिज्यो जी भगत-बछल थारों बिरद कहावे, श्याम मोपे किरपा करज्यो जी मीराँ के प्रभु गिरिधर नागर, आज म्हारी लाज राखिज्यो जी