Jo Tu Krishna Nam Dhan Dharto

नाम महिमा जो तूँ कृष्ण नाम धन धरतो अब को जनम आगिलो तेरो, दोऊ जनम सुधरतो जन को त्रास सबै मिटि जातो, भगत नाँउ तेरो परतो ‘सूरदास’ बैकुण्ठ लोक में, कोई न फेंट पकरतो

Shyam Tan Shyam Man Shyam Hai Hamaro Dhan

प्राण धन श्याम तन, श्याम मन, श्याम है हमारो धन आठो जाम ऊधौ हमें, श्याम ही सो काम है श्याम हिये, श्याम तिये, श्याम बिनु नाहिं जियें आँधे की सी लाकरी, अधार श्याम नाम है श्याम गति, श्याम मति, श्याम ही है प्रानपति श्याम सुखदाई सो भलाई सोभाधाम है ऊधौ तुम भये बौरे, पाती लैकै […]

Hamare Nirdhan Ke Dhan Ram

प्रबोधन हमारे निर्धन के धन राम चोर न लेत घटत नहिं कबहूँ, आवत गाढ़ैं काम जल नहिं बूड़त, अगिनि न दाहत, है ऐसो हरि नाम वैकुण्ठनाथ सकल सुख दाता, ‘सूरदास’ सुख-धाम

Payo Ji Mhe To Ram Ratan Dhan Payo

हरि भक्ति पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो वास्तु अमोलक दी म्हाने सतगुरु, किरपा कर अपनायो जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो खरच न हौवे, चोर न लेवै, दिन दिन बढ़त सवायो सत की नाव केवटिया सतगुरु, भव-सागर तर आयो ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरख हरख जस गायो

Tan Ki Dhan Ki Kon Badhai

अन्त काल तन की धन की कौन बड़ाई, देखत नैनों में माटी मिलाई अपने खातिर महल बनाया, आपहि जाकर जंगल सोया हाड़ जले जैसे लकरि की मोली, बाल जले जैसे घास की पोली कहत ‘ कबीर’ सुनो मेरे गुनिया, आप मरे पिछे डूबी रे दुनिया

Khelat Fag Pran Dhan Mohan

होली का रंग खेलन फाग प्रानधन मोहन, मेरे द्वारे आयो रे नटवर रूप देखि प्रीतम को, मेरो मन उमगायो रे संग सखा सब छैल-छबीले, लाल गुलाल उड़ायो रे सोहत हाथ कनक-पिचकारी, केसर रंग रँगायो रे ओसर पाइ लई मैं मुरली, काजर नयन लगायो रे सिर चुंदरी ओढ़ाय लाल को, लाली भेष बनायो रे घेरि सखिन […]

Pran Dhan Sundar Shyam Sujan

दर्शन की प्यास प्रानधन! सुन्दर श्याम सुजान छटपटात तुम बिना दिवस निसि, पड़ी तुम्हारी बान कलपत विलपत ही दिन बीतत, निसा नींद नहिं आवै स्वप्न दरसहू भयौ असंभव, कैसे मन सचु पावै अब मत देर करो मनमोहन, दया नैकु हिय धारौ सरस सुधामय दरशन दै निज, उर को ताप निवारौ

Mare Jivan Dhan Nandlal

निवेदन मेरे जीवन धन नंदलाल तुम बिनु मेरे प्राणनाथ! ये तन मन बहुत विहाल तरसहिं नयन दरस को निसिदिन, लागहिं भोग बवाल इसी भाँति सब वयस बिताई, मिले ने तुम गोपाल कहा करों, कोउ पन्थ न सूझत, कैसे मिलि हो लाल मेरे जीवन के जीवन तुम, तुम बिनु सब जंजाल कहा तिहारी बान प्रानधन, तरसावहु […]

Kathinai Se Dhan Arjan Ho

सात्विक दान कठिनाई से धन अर्जन हो, और दान कर पाये धन का लोभ सदा ही रहता, त्याग कठिन हो जाये याद रहे अधिकांश धर्म में व्यय हो, कमी न आये कुएँ से जल जितना निकले, फिर से वह भर जाये धन कमाय जो भी ईमान से, वह सात्विक कहलाये कृषि एवं व्यवसाय से अर्जित, […]

Ja Rahe Pran Dhan Mathura Ko

मथुरा प्रवास जा रहे प्राणधन मथुरा को राधा रानी हो रही व्यथित, सूझे कुछ भी नहीं उनको अंग अंग हो रहे शिथिल, और नीर भरा नयनों में आर्त देख राधा को प्रियतम, स्वयं दुःखी है मन में प्रिया और प्यारे दोनों की, व्याकुल स्थिति ऐसी दिव्य प्रेम रस की यह महिमा, उपमा कहीं न वैसी […]