हनुमान आश्रय
जाकी गति है हनुमान की
ताकी पैज पूजि आई, यह रेखा कुलिस पषान की
अघटि-घटन, सुघटन-विघटन, ऐसी विरुदावलि नहिं आन की
सुमिरत संकट सोच-विमोचन, मूरति मोद-निधान की
तापर सानुकूल गिरिजा, शिव, राम, लखन अरु जानकी
‘तुलसी’ कपि की कृपा-विलोकनि, खानि सकल कल्यान की
Tag: Gati
Udho Karaman Ki Gati Nyari
कर्म की गति
ऊधौ करमन की गति न्यारी
सब नदियाँ जल भरि-भरि रहियाँ, सागर केहि विधि खारी
उज्जवल पंख दिये बगुला को, कोयल केहि गुन कारी
सुन्दर नयन मृगा को दीन्हें, वन वन फिरत उजारी
मूरख को है राजा कीन्हों, पंडित फिरत भिखारी
‘सूर’ श्याम मिलने की आशा, छिन छिन बीतत भारी
Karan Gati Tare Naahi Tare
कर्म-विपाक
करम गति टारे नाहिं टरे
सतवादी हरिचंद से राजा, नीच के नीर भरे
पाँच पांडु अरु कुंती-द्रोपदी हाड़ हिमालै गरे
जग्य कियो बलि लेण इंद्रासन, सो पाताल परे
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, विष से अमृत करे
Karam Gati Tare Nahi Tari
कर्म विपाक
करम गति तारे नाहिं टरी
मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सोध के लगन धरी
सीता हरण, मरण दशरथ को, वन में विपति परी
नीच हाथ हरिचन्द बिकाने, बली पताल धरी
कोटि गाय नित पुण्य करत नृग, गिरगिट जोनि परी
पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर विपति परी
दुर्योधन को गर्व घटायो, जदुकुल नाश करी
राहु केतु अरु भानु चन्द्रमा, विधि संजोग परी
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, होनी नाहिं टरी
Pulakit Malay Pawan Manthar Gati
वसंतोत्सव
पुलकित मलय-पवन मंथर गति, ऋतु बसंत मन भाये
मधुप-पुंज-गुंजित कल-कोकिल कूजित हर्ष बढ़ाये
चंदन चर्चित श्याम कलेवर पीत वसन लहराये
रंग बसंती साड़ी में, श्री राधा सरस सुहाये
भाव-लीन अनुपम छबिशाली, रूप धरे नँद-नंदन
घिरे हुवे गोपीजन से वे क्रीड़ा रत मन-रंजन
गोप-वधू पंचम के ऊँचे स्वर में गीत सुनाती
रसनिधि मुख-सरसिज को इकटक निरख रहीं मदमाती
मधुऋतु में करते विहार हरि, कालिंदी-तट-पावन
राधा रूप निहारे मोहन, मुखरित है वृन्दावन
राधा कितनी सौम्य सुधामय, कहते श्री मधुसूदन
स्किन्ध कपोल गुलाल लगाये, हरि करते परिरम्भन