अंतिम अवस्था
अब ओढ़ावत है चादरिया, वह देखो रे चलती बिरिया
तन से प्राण जो निकसन लागे, उलटी नयन पुतरिया
भीतर से जब बाहर लाये, छूटे महल अटरिया
चार जने मिल खाट उठाये, रोवत चले डगरिया
कहे ’कबीर’ सुनो भाई साधो, सँग में तनिक लकड़िया
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Tan Rakta Mans Ka Dhancha Hai
चेतावनी
तन रक्त माँस का ढाँचा है, जो ढका हुआ है चमड़े से
श्रृंगार करे क्या काया का, जो भरी हुई है दुर्गन्धों से
खाये पीये कितना बढ़िया, मल-मूत्र वहीं जो बन जाता
ऐसे शरीर की रक्षा में, दिन रात परिश्रम है करता
मन में जो रही वासनाएँ, वे अन्त समय तक साथ रहें
मृत्योपरांत हो पुनर्जन्म, पशु पक्षी नर का कौन कहे
तूँ मोह पाश में बँधा रहा, तेरी भारी है भूल यही
अब चित्त लगा प्रभु चरणों में, आश्रित का हरते कष्ट वही
Sakhi Ye Badbhagi Hai Mor
बड़भागी नंद यशोदा
सखी! ये बड़भागी हैं मोर
जेहि पंखन को मुकुट बन्यो है धर लियो नंद किशोर
बड़ भागी अति नंद यशोदा, पुण्य किये भर जोर
शिव विरंचि नारद मुनि ज्ञानी, ठाड़े हैं कर जोर
‘परमानन्द’ दास को ठाकुर, गोपियन के चितचोर
Kahe Ko Tan Manjta Re Mati Main Mil Jana Hai
सत्संग महिमा
काहे को तन माँजता रे, माटी में मिल जाना है
एक दिन दूल्हा साथ बराती, बाजत ढोल निसाना है
एक दिन तो स्मशान में सोना, सीधे पग हो जाना है
सत्संगत अब से ही करले, नाहिं तो फिर पछताना है
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, प्रभु का ध्यान लगाना है
Trashna Hi Dukh Ka Karan Hai
तृष्णा
तृष्णा ही दुःख का कारण है
इच्छाओं का परित्याग करे, संतोष भाव आ जाता है
धन इतना ही आवश्यक है जिससे कुटंब का पालन हो
यदि साधु सन्त अतिथि आये, उनका भी स्वागत सेवा हो
जो सुलभ हमें सुख स्वास्थ्य कीर्ति, प्रारब्ध भोग इसको कहते
जो झूठ कपट से धन जोड़ा, फलस्वरूप अन्ततः दुख सहते
उसकी रक्षा की चिन्ता हो, कुछ भी तो साथ नहीं जाता
सत्कर्म किया हो जीवन में, सद्भाव काम में तब आता
Satswarup Hai Aatma
सत्य दर्शन
सत्स्वरूप है आत्मा, जो स्वभावतः सत्य
झूठ बाहरी वस्तु है, जो अवश्य ही त्याज्य
धन आसक्ति प्रमादवश, व्यक्ति बोलता झूठ
सत्य आचरण ही करें, प्रभु ना जाए रूठ
छद्म पूर्ण हो चरित तो, कहीं न आदर पाय
कपट शून्य हो आचरण, विश्वासी हो जाय
काम क्रोध व लोभ है, सभी नरक के द्वार
धनोपार्जन में रहे, सात्विक शुद्ध विचार
सद्गुणसद्गुण जीवन में अपनायें
क्या भला बुरा इसका निर्णय, सद्ग्रन्थों से ही मिल पाये
साधु संतों का संग करे, आदर्श उन्हीं का जीवन हो
तब भाव बुरे टिक नहिं पाये, सद्बुद्धि जागृत मन में हो
करुणानिधान प्रभु कृपा करें, जीवन कृतार्थ तब हो जाये
जो कुछ भी सद्गुण दिखें कहीं, उनको हम तत्क्षण अपनायें
जगद्गुरुसद्गुरु का मिलना दुर्लभ है, उद्धार हमारा कैसे हो
जो महापुरुष होते सच में, शायद ही शिष्य बनाते हों
उद्धार शिष्य का कर न सकें, इसलिए मना कर देते हों
भगवान् कृष्ण हैं जगद्गुरु, श्रीभगवद्गीता कहे यही
अर्जुन का मोह विनष्ट किया, वे पूज्य गुरु से बढ़ कर ही
Jiwan Ko Vyartha Ganwaya Hai
चेतावनी
जीवन को व्यर्थ गँवाया है
मिथ्या माया जाल जगत में, फिर भी क्यों भरमाया है
मारी चोंच तो रुई उड़ गई, मन में तूँ पछताया है
यह मन बसी मूर्खता कैसी, मोह जाल मन भाया है
कहे ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, मनुज जन्म जो पाया है
Nand Nandan Bado Natkhati Hai
नटखट कन्हैया
नँदनंदन बड़ो नटखटी है
मैं दधिमाखन बेचन जाऊँ, पथ रोक ले मेरो धाय के
जो नहीं देऊँ मैं माखन तो,वो लूट ले आँख दिखाय के
जब भी घर से बाहर जाऊँ, चुपके से घर में आय के
तब ग्वाल-बाल को संग में ले, मटको फोड़े दधि खाय के
घर की भी सुधि नहीं लेने दे, वो वंशी तान सुनाय के
मुझे रात में सोने दे भी नहिं, सपने में चित्त चुराय के
Sab Chala Chali Ka Mela Hai
नश्वर संसार
सब चला चली का मेला है
कोई चला गया कोई जाने को, बस चार दिनों का खेला है
घर बार कपट की माया है, जीवन में पाप कमाया है
ये मनुज योनि अति दुर्लभ है, जिसने दी उन्हें भुलाया है
विषयों में डूब रहा अब भी, जाने की आ गई वेला रे
सब मित्र और सम्बन्धी भी, छोड़ेंगे तुझे अकेला रे
हरिनाम साथ में ही जाये, जप साँस साँस पर उनको तूँ
कोई न काम कुछ आयेगा, हिरदै में बसा ले प्रभु को तूँ
Rahna Nahi Des Birana Hai
नश्वर संसार
रहना नहीं देस बिराना है
यह संसार कागद की पुड़िया, बूँद पड़े घुल जाना है
यह संसार काँट की बाड़ी, उलझ उलझ मरि जाना है
यह संसार झाड़ और झाँखर, आग लगे बरि जाना है
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, सतगुरु नाम ठिकाना है