अन्नकूट
देखे सब हरि भोग लगात
सहस्र भुजा धर उत जेमत है, इन गोपन सों करत है बात
ललिता कहत देख हो राधा, जो तेरे मन बात समात
धन्य सबहिं गोकुल के वासी, संग रहत गोकुल के नाथ
जेमत देख नंद सुख दीनों, अति प्रसन्न गोकुल नर-नारी
‘सूरदास’ स्वामी सुख-सागर, गुण-आगर नागर दे तारी
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Meera Lago Rang Hari
हरि से प्रीति
‘मीराँ’ लागो रंग हरी, और न रँग की अटक परी
चूड़ो म्हाँरे तिलक अरु माला, सील बरत सिणगारो
और सिंगार म्हाँरे दाय न आवे, यो गुरू ज्ञान हमारो
कोई निंदो कोई बिंदो म्हे तो, गुण गोबिंद का गास्याँ
जिण मारग म्हाँरा साध पधारौ, उण मारग म्हे जास्याँ
चोरी न करस्याँ, जिव न सतास्याँ, काँइ करसी म्हारो कोई
गज से उतर के खर नहीं चढ्स्याँ, या तो बात न होई
Shri Hari Vishnu Aashray Sabke
श्री विष्णु सहस्त्रनाम महिमा
श्री हरि विष्णु आश्रय सबके, गुणगान करें हम श्रद्धा से
यह धर्म बड़ा है जीवन में, जो मुक्त करे जग बंधन से
भगवान विष्णु के नाम सहस्त्र, अर्चन हो, दे शुभ संस्कार
सब दुःखों से हो छुटकारा, सुख शान्ति मिले, छूटें विकार
अविनाशी पिता प्राणियों के, कर्ता धर्ता हर्ता जग के
लोक प्रधान श्री विष्णु ही, कई नाम कथाओं में उनके
जो सहस्त्र नाम का पाठ करे, श्रद्धा पूर्वक पाये न कष्ट
हो विजय सुनिश्चित क्षत्रिय की, धन पाय वैश्य जो भी अभीष्ट
वेदोक्त ज्ञान हो ब्राह्मण को, और शुद्र सहज ही सुख पाते
महाराज युधिष्ठिर धर्म-पुत्र को, भीष्म पितामह यों कहते
Dekhe Ham Hari Nangam Nanga
श्याम स्वरुप
देखे हम हरि नंगम्नंगा
आभूषण नहिं अंग बिराजत, बसन नहीं, छबि उठत तरंगा
अंग अंग प्रति रूप माधुरी, निरखत लज्जित कोटि अनंगा
किलकत दसन दधि मुख लेपन, ‘सूर’ हँसत ब्रज जुवतिन संगा
Main Hari Charanan Ki Dasi
हरि की दासी
मैं हरि चरणन की दासी
मलिन विषय रस त्यागे जग के, कृष्ण नाम रस प्यासी
दुख अपमान कष्ट सब सहिया, लोग कहे कुलनासी
आओ प्रीतम सुन्दर निरुपम, अंतर होत उदासी
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, चैन, नींद सब नासी
Nand Dham Khelat Hari Dolat
बाल क्रीड़ा
नन्द –धाम खेलत हरि डोलत
जसुमति करति रसोई भीतर, आपुन किलकत बोलत
टेरि उठी जसुमति मोहन कौं, आवहु काहैं न धाइ
बैन सुनत माता पहिचानी, चले घुटुरुवनि पाइ
लै उठाइ अंचल गहि पोंछै, धूरि भरी सब देह
‘सोर्दास’ जसुमति रज झारति, कहाँ भरी यह खेह
Suni Main Hari Aawan Ki
प्रतीक्षा
सुनी मैं हरि आवन की अवाज
महल चढ़ि चढ़ि देखूँ मोरी सजनी, कब आवे महाराज
दादुर मोर पपीहा बोलै, कोयल मधुरे साज
उमग्यो बदरा चहुँ दिस बरसे, दामिनि छोड़ी लाज
धरती रूप नवा नवा धरिया, इंद्र मिलन के काज
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, बेग मिलो महाराज
Braj Me Hari Hori Machai
होली
ब्रज में होरी मचाई
इत ते आई कुँवरि राधिका, उतते कुँवर कन्हाई
गोपिन लाज त्यागि रंग खेलत, शोभा बरनि न जाई, नंद-घर बजत बधाई
बाजत ताल मृदंग बाँसुरी, बीना डफ शहनाई
उड़त अबीर, गुलाल, कुंकुमा, रह्यो चहुँ दिसि छाई, मानो मघवा झड़ी लगाई
भरि-भरि रंग कनक पिचकारी, सन्मुख सबै चलाई
छिरकत रंग अंग सब भीजै, झुक झुक चाचर गाई, अति उमंग उर छाई
राधा सेन दई सखियन को, झुंड झुंड घिर आई
लपट लपट गई श्याम सुंदर सौं, हाथ पकर ले जाई, लालजी को नाच नचाई
उत्सुक सबहीं खेलन आई, मरजादा बिसराई
‘सूरदास’ प्रभु छैल छबीले, गोपिन अधिक रिझाई, प्रीति न रही समाई
Hari Tum Haro Jan Ki Pir
पीड़ा हरलो
हरि तुम हरो जन की भीर
द्रौपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर
भक्त कारन रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर
हरिणकस्यप मारि लीन्हौं, धर्यो नाहिं न धीर
बूड़तो गजराज राख्यौ, कियो बाहर नीर
दासी ‘मीराँ’ लाल गिरिधर, हरो म्हारी पीर
Radha Te Hari Ke Rang Ranchi
अभिन्नता
राधा! मैं हरि के रंग राँची
तो तैं चतुर और नहिं कोऊ, बात कहौं मैं साँची
तैं उन कौ मन नाहिं चुरायौ, ऐसी है तू काँची
हरि तेरौ मन अबै चुरायौ, प्रथम तुही है नाची
तुम औ’ स्याम एक हो दोऊ, बात याही तो साँची
‘सूर’ श्याम तेरे बस राधा! कहति लीक मैं खाँची