Goutam Rishi Patni Ahilya Hi

अहिल्या-उद्धार गौतम ऋषि पत्नि अहिल्या ही, शापित होकर पाषाणहुई श्रीराम चरण स्पर्श मिला, देवी तप-मूर्ति प्रकट भई बड़भागिन प्रभु के चरणों से, होकर अधीर तब लिपट गई बोली- ‘प्रभु मैं तो अभागिन हूँ, जो चरण शरण में हूँ आई मुनिवर ने शाप दिया था जो अनुग्रह का रूप लिया उसने वह दूर हुआ हरि दर्शन […]

Garharsthya Dharma Sarvottam Hi

गृहस्थ जीवन गार्हस्थ्य धर्म सर्वोत्तमही इन्द्रिय-निग्रह व सदाचार, अरु दयाभाव स्वाभाविक ही सेवा हो माता पिता गुरु की, परिचर्या प्रिय पति की भी हो ऐसे गृहस्थी पर तो प्रसन्न, निश्चय ही पितर देवता हो हो साधु, संत, सन्यासी के, जीवनयापन का भी अधार जहाँ सत्य, अहिंसा, शील तथा, सद्गुण का भी निश्चित विचार  

Kahi Main Aise Hi Mari Jeho

वियोग व्यथा कहीं मैं ऐसै ही मरि जैहौं इहि आँगन गोपाल लाल को कबहुँ कि कनियाँ लैहौं कब वह मुख पुनि मैं देखौंगी, कब वैसो सुख पैंहौं कब मोपै माखन माँगेगो, कब रोटी धरि दैंहौं मिलन आस तन प्राण रहत है, दिन डस मारग चैहौं जौ न ‘सूर’ कान्ह आइ हैं तो, जाइ जमुन धँसि […]

Chaitanya Swarup Hi Atma Hai

आत्मानुभूति चैतन्य स्वरूप ही आत्मा है यह शुद्ध देह का शासक है, अन्तःस्थित वही शाश्वत है आत्मा शरीर को मान लिया, मिथ्या-विचार अज्ञान यही यह देह मांसमय अपवित्र और नाशवान यह ज्ञान सही है इच्छाओं का तो अन्त नहीं, मन में जिनका होता निवास मृग-तृष्णा के ही तो सदृश, मानव आखिर होता निराश यह राग […]

Jag Me Jiwat Hi Ko Nato

मोह माया जग में जीवत ही को नातो मन बिछुरे तन छार होइगो, कोउ न बात पुछातो मैं मेरो कबहूँ नहिं कीजै, कीजै पंच-सुहातो विषयासक्त रहत निसि –वासर, सुख सियारो दुःख तातो साँच झूँट करि माया जोरी, आपन रूखौ खातो ‘सूरदास’ कछु थिर नहिं रहई, जो आयो सो जातो

Jiwan Bit Gaya Sab Yun Hi

शरणागति जीवन बीत गया सब यूँ ही, भला न कुछ कर पाया तेरी मेरी करके ही बस, सारा समय बिताया कहीं हुआ सम्मान जरा तो, अहंकार मन आया कितना बड़ा आदमी हूँ मैं, सोच व्यर्थ इठलाया जड़ चेतन में तूँ ही तू है, फिर भी क्यों भरमाया किया एक से राग, और दूजे को ठुकराया […]

Patiyan Main Kaise Likhu Likhi Hi Na Jay

विरह व्यथा पतियाँ मैं कैसे लिखूँ, लिखि ही न जाई कलम धरत मेरो कर कंपत है, हियड़ो रह्यो घबराई बात कहूँ पर कहत न आवै, नैना रहे झर्राई किस बिधि चरण कमल मैं गहिहौं, सबहि अंग थर्राई ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, बेगि मिल्यो अब आई

Jo Karna Ho Karlo Aaj Hi

वर्तमान जो करना हो कर लो आज ही अनुकूल समय का मत सोचो, मृत्यु का कुछ भी पता नहीं चाहे भजन ध्यान या धर्म कार्य, इनमें विलम्ब हम नहीं करें सत्कार्य जो सोचा हो मन में, कार्यान्वित वह तत्काल करे वैभव नहिं शाश्वत, तन अनित्य, शुभ कर्मों में मन लगा रहे कल करना हो वह […]

Mero Man Ram Hi Ram Rate Re

नाम की महिमा मेरो मन रामहि राम रटै रे राम नाम जप लीजै प्राणी, कोटिक पाप कटे रे जनम जनम के लेख पुराने, नामहि लेत फटे रे कनक कटोरे अमृत भरियो, पीवत कौन नटे रे ‘मीराँ’ कहे प्रभु हरि अविनासी, तन-मन ताहि पटे रे

Trashna Hi Dukh Ka Karan Hai

तृष्णा तृष्णा ही दुःख का कारण है इच्छाओं का परित्याग करे, संतोष भाव आ जाता है धन इतना ही आवश्यक है जिससे कुटंब का पालन हो यदि साधु सन्त अतिथि आये, उनका भी स्वागत सेवा हो जो सुलभ हमें सुख स्वास्थ्य कीर्ति, प्रारब्ध भोग इसको कहते जो झूठ कपट से धन जोड़ा, फलस्वरूप अन्ततः दुख […]