संत-स्वभाव
कबहुँक हौं या रहनि रहौंगो
श्री रघुनाथ कृपालु-कृपातें, संत स्वभाव गहौंगो
जथा लाभ संतोष सदा, काहू सों कछु न चहौंगो
परहित निरत निरंतर मन क्रम वचन नेम निबहौंगो
परिहरि देह जनित चिंता, दुख-सुख समबुद्धि सहौंगो
‘तुलसिदास’ प्रभुयहि पथ अविचल, रहि हरि-भगति लहौंगो
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Jo Karna Ho Karlo Aaj Hi
वर्तमान
जो करना हो कर लो आज ही
अनुकूल समय का मत सोचो, मृत्यु का कुछ भी पता नहीं
चाहे भजन ध्यान या धर्म कार्य, इनमें विलम्ब हम नहीं करें
सत्कार्य जो सोचा हो मन में, कार्यान्वित वह तत्काल करे
वैभव नहिं शाश्वत, तन अनित्य, शुभ कर्मों में मन लगा रहे
कल करना हो वह आज करे, संभव शरीर कल नहीं रहे
Tu Dayalu Din Ho Tu Dani Ho Bhikhari
शरणागति
तू दयालु, दीन हौं, तू दानि, हौं भिखारी
हौं प्रसिद्ध पातकी, तू पाप – पुंज – हारी
नाथ तू अनाथ को, अनाथ कौन मोसो
मो समान आरत नहिं, आरतहर तोसो
ब्रह्म तू, हौं जीव, तू ठाकुर, हौं चेरो
तात, मात, गुरु, सखा तू, सब बिधि हितू मेरो
तोहि मोहिं नाते अनेक, मानियै जो भावै
ज्यों – त्यों ‘तुलसी’, कृपालु! चरन – सरन पावै
Tum Prem Ke Ho Ghanshyam
प्रेमवश प्रभु
तुम प्रेम के हो घनश्याम
गोपीजन के ऋणी बने तुम, राधा वल्लभ श्याम
शबरी के जूँठे फल खाये, सीतापति श्रीराम
लंका राज विभीषण पायो, राम भक्ति परिणाम
बंधन मुक्त करे निज जन को, जसुमति बाँधे दाम
गाढ़ी प्रीत करी ग्वालन संग, यद्यपि पूरम-काम
व्यंजन त्याग साग को भोजन, कियो विदुर के ठाम
राजसूय में जूँठ उठाई, प्रीति बढ़ाई श्याम
तंदुल लेकर दियो सुदामा, कंचन माणिक धाम
भज मन प्रेमनिधे उन प्रभु को, निशि दिन आठो याम
Bali Bali Ho Kuwari Radhika
राधा कृष्ण प्रीति
बलि बलि हौं कुँवरि राधिका, नन्दसुवन जासों रति मानी
वे अति चतुर, तुम चतुर-शिरोमनि, प्रीत करी कैसे रही छानी
बेनु धरत हैं, कनक पीतपट, सो तेरे अन्तरगत ठानी
वे पुनि श्याम, सहज तुम श्यामा, अम्बर मिस अपने उर आनी
पुलकित अंग अवहि ह्वै आयो, निरखि सखी निज देह सयानी
‘सूर’ सुजान सखी को बूझे, प्रेम प्रकास भयौ बिकसानी
Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko
कर्म निष्ठा
नर हो न निराश, करो मन को, बस कर्म करो पुरुषार्थ करो
आ जाय समस्या जीवन में, उद्देश्य हमारा जहाँ सही
साहस करके बढ़ते जाओ, दुष्कर कोई भी कार्य नहीं
संघर्ष भरा यहा जीवन है, आशा को छोड़ो नहीं कभी
मन में नारायण नाम जपो, होओगे निश्चित सफल तभी
जब घिर जाये हम कष्टों से, माने न हार किंचित न डरें
एकलव्य कथा से सुपरिचित, हो नहिं हताश पुरुषार्थ करें
हम धैर्य धरें विश्वास करें, मंगलमय प्रभु का जो विधान
अविरत प्रयास में लीन रहें, शुभ ही करते करुणा-निधान
हरि-नाम स्मरण को नहीं भूले, कठिनाई हल्की हो जाये
कुछ अनुष्ठान प्रायश्चित हो, बाधाएँ सारी मिट जाये
Main Apani Sab Gai Chare Ho
गौ चारण लीला
मैं अपनी सब गाइ चरैहौं
प्रात होत बल के संग जैहौं, तेरे कहे न रैहौं
ग्वाल-बाल गाइनि के भीतर, नेकहु डर नहिं लागत
आजु न सोवौं, नंद-दुहाई, रैनि रहौंगो जागत
और ग्वाल सब गाइ चरैहैं, मैं घर बैठौ रैहौं
‘सूर’ श्याम, तुम सोइ रहो अब, प्रात जान मैं दैहौं
Nirmal Vivek Ho Ant Samay
गजेन्द्र स्तुति
निर्मल विवेक हो अन्त समय
गजेन्द्र-मोक्ष स्तवन करे, नित ब्रह्म मुहूर्त में हो तन्मय
अद्भुत स्तुति नारायण की, जो गजेन्द्र द्वारा सुलभ हमें
हो अन्त समय में जैसी मति, वैसी ही गति हो प्राप्त हमें
पापों, विघ्नों का शमन करें, स्तुति श्रेय यश को देती
निष्काम भाव अरू श्रद्धा से, हम करें कष्ट सब हर लेती
Mohi Taj Kahan Jat Ho Pyare
हृदयेश्वर श्याम
मोहि तज कहाँ जात हो प्यारे
हृदय-कुंज में आय के बैठो, जल तरंगवत होत न न्यारे
तुम हो प्राण जीवन धन मेरे, तन-मन-धन सब तुम पर वारे
छिपे कहाँ हो जा मनमोहन, श्रवण, नयन, मन संग तुम्हारे
‘सूर’ स्याम अब मिलेही बनेगी, तुम सरबस हो कान्ह हमारे
Nishthur Bane Ho Kaise
विरह वेदना
निष्ठुर बने हो कैसे, चित्तचोर हे बिहारी
चित्तवन तुम्हारी बाँकी, सर्वस्व तुम्ही पे वारी
सूरत तेरी सुहानी, नैनों में वह समाई
हम से सहा न जाये, ऐसा वियोग भारी
मुरली की धुन सुना दो, रस प्यार का बहा दो
चन्दा सा मुख दिखा दो, अनुपम छबि तुम्हारी
वन वन भटक रही है, तुमको दया न आती
क्या प्रेम की परीक्षा लेते हो तुम मुरारी
आधार एक तुम ही, प्राणों में साँस भर दो
दर्शन की प्यासी मोहन, हमको है क्यों बिसारी