श्याम से लगन
प्यारे मोहन भटक न जाऊँ
तुम ही हो सर्वस्व श्याम, मैं तुम में ही रम जाऊँ
जब तक जिऊँ तुम्हारे ही हरि! अद्भुत गुण मैं गाऊँ
गा-गा गुण गौरव तब मन में, सदा सदा सरसाऊँ
भूल भरा हूँ नित्यनाथ! मैं तुमसे यही मनाऊँ
सदा प्रेरणा करना ऐसी, तुम्हें न कभी भुलाऊँ
तुम्हने दी है लगन नाथ! तो यह मन कहाँ लगाऊँ
कण कण में तुमको निहार, बस तुम पर प्राण लुटाऊँ
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Jau Kahan Taji Charan Tumhare
रामाश्रय
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे
काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे
कौनहुँ देव बड़ाइ विरद हित, हठि हठि अधम उधारे
खग मृग व्याध, पषान, विटप जड़यवन कवन सुर तारे
देव दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब माया-विवश बिचारे
तिनके हाथ दास ‘तुलसी’ प्रभु, कहा अपुनपौ हारे
Tum Taji Aur Kon Pe Jau
परम आश्रय
तुम तजि और कौन पै जाऊँ
काके द्वार जाइ सिर नाऊँ, पर हथ कहाँ बिकाऊँ
ऐसे को दाता है समरथ, जाके दिये अघाऊँ
अंतकाल तुम्हरै सुमिरन गति, अनत कहूँ नहिं पाऊँ
भव-समुद्र अति देखि भयानक, मन में अधिक डराऊँ
कीजै कृपा सुमिरि अपनो प्रन, ‘सूरदास’ बलि जाऊँ
Main Giridhar Ke Ghar Jau
प्रगाढ़ प्रीति
मैं गिरिधर के घर जाऊँ
गिरिधर म्हाँरो साँचो प्रीतम, देखत रूप लुभाऊँ
रैन पड़ै तब ही उठ जाऊँ, भोर भये उठि आऊँ
रैन दिना वाके सँग खेलूँ, ज्यूँ त्यूँ ताहि रिझाऊँ
जो पहिरावै सोई पहिरूँ, जो दे सोई खाऊँ
मेरी उनकी प्रीति पुरानी, उन बिन पल न रहाऊँ
जहाँ बैठावे तितही बैठूँ, बेचे तो बिक जाऊँ
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, बार बार बलि जाऊँ