Kanha Thari Jowat Rah Gai Baat

विरह व्यथा कान्हा! थारी जोवत रह गई बाट जोवत-जोवत इक पग ठाढ़ी, कालिन्दी के घाट छल की प्रीति करी मनमोहन, या कपटी की बात ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, ब्रज को कियो उचाट

Braj Main Kanha Dhum Machai

होली ब्रज में कान्हा धूम मचाई, ऐसी होरी रमाई इतते आई सुघड़ राधिका, उतते कुँवर कन्हाई हिलमिल के दोऊ फाग रमत है, सब सखियाँ ललचाई, मिलकर सोर मचाई राधेजी सैन दई सखियन के, झुंड-झुंड झट आई रपट झपट कर श्याम सुन्दर कूँ, बैयाँ पकड़ ले जाई, लालजी ने नाच नचाई मुरली पीताम्बर छीन लियो है, […]

Kou Ya Kanha Ko Samujhawe

नटखट कन्हैया कोउ या कान्हा को समुझावै कैसो यह बेटो जसुमति को, बहुत ही धूम मचावै हम जब जायँ जमुन जल भरिबे घर में यह घुस जावै संग सखा मण्डली को लै यह, गोरस सबहिं लुटावै छींके धरी कमोरी को सखि, लकुटी सो ढुरकावै आपु खाय अरु धरती पर, गोरस की कीच बनावै जब हम […]