Aiso Ko Udar Jagmahi

राम की उदारता
ऐसो को उदार जग माहीं
बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर, राम सरिस कोउ नाहीं
जो गति जोग बिराग जतन करि, नहिं पावत मुनि ग्यानी
सो गति देत गीध सबरी कहँ, प्रभु न बहुत जिय जानी
जो संपत्ति दस सीस अरपि करि रावन सिव पहँ लीन्हीं
सोई संपदा विभीषन कहँअति, सकुच सहित हरि दीन्हीं
‘तुलसिदास’ सब भांति सकल सुख, जो चाहसि मन मेरो
तौ भजु राम, काम सब पूरन करैं कृपानिधि तेरो

Hamro Pranam Banke Bihari Ko

मीरा का प्रणाम
हमरो प्रणाम बाँके बिहारी को
मोर मुकुट माथे तिलक बिराजै, कुण्डल अलका कारी को
अधर धर मुरली मधुर बजावै, रिझावै राधा प्यारी को
यह छबि देख मगन भई ‘मीराँ’, मोहन गिरिवर धारी को

Gopiyan Dhundh Rahi Mohan Ko

अनुराग
गोपियाँ ढूँढ रही मोहन को
हम भटक रही है वन में, प्रिय दर्शन दे दो हमको
वह प्रेम भरा आलिंगन, मनमोहक प्यारी चितवन
तो लगीं गर्व हम करने, त्रुटि हमसे हुई बिहारी
हे पीपल, आम, चमेली! चितचोर कहाँ क्या देखा!
तुम हमको मार्ग बता दो,हम दुःखी हैं ब्रजनारी
तब चरणचिन्ह गोविन्द के, वें देख बढ़ी फिर आगे
छलिया मोहन के सँग में, लगता है राधा प्यारी
वो बैठ गई थक कर के, जब प्रियतम के कंधे पर
अदृश्य हुए नटनागर, सो विलख रही सुकुमारी
अचेत हो गई राधा, सखियों ने उन्हें जगाया
सब फूट फूट कर रोयें, तो प्रकट हुए बनवारी

Prabhu Ne Vedon Ko Pragat Kiya

चतुर्वेद महिमा
प्रभु ने वेदों को प्रगट किया
भगवान् व्यास ने वेदों को देकर हम पर उपकार किया
ऋग्वेद के द्वारा निस्संदेह, विज्ञान सृष्टि को जान सके
हम यजुर्वेद का मनन करें, क्या अन्तरिक्ष पहचान सके
हम सामवेद का छन्द पढ़ें, ब्रह्मोपासना सुलभ बने
हो अथर्ववेद का पारायण, तो स्वास्थ्य हमारा भला बने
जो शिरोभाग में उपनिषद्, वे वेद-ज्ञान प्रस्तुत करते
हम करें अध्ययन भलीभाँति, जीवन का ध्येय यही देते
ब्राह्मण, आरण्यक, शास्त्र तथा सारे पुराण सोपान ही तो
समुचित उपयोग करें इनका, वेदों को समझ सकें तब तो
वैदिक भाषा में सुलभ हमें, यह ज्ञानामृत की शुभ धारा
पहुँचा दे हम सारे जग में, सुख शांति भाव इसके द्वारा 

Kali Nam Kam Taru Ram Ko

राम स्मरण
कलि नाम कामतरु राम को
दलनिहार दारिद दुकाल दुख, दोष घोर धन धाम को
नाम लेत दाहिनों होत मन वाम विधाता वाम को
कहत मुनीस महेस महातम, उलटे सूधे नाम को
भलो लोक – परलोक तासु जाके बल ललित – ललाम को
‘तुलसी’ जग जानियत नामते, सोच न कूच मुकाम को

Kahe Ko Tan Manjta Re Mati Main Mil Jana Hai

सत्संग महिमा
काहे को तन माँजता रे, माटी में मिल जाना है
एक दिन दूल्हा साथ बराती, बाजत ढोल निसाना है
एक दिन तो स्मशान में सोना, सीधे पग हो जाना है
सत्संगत अब से ही करले, नाहिं तो फिर पछताना है
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, प्रभु का ध्यान लगाना है

Jag Janani Radhika Ko Pranam

श्री राधा माहात्म्य
जगजननी राधिका को प्रणाम
सच्चिदानन्द विग्रह जिनका, लीला रस की वे दिव्य धाम
जो परमतत्व श्रीकृष्ण उन्हीं की, परम शक्ति हैं श्रीराधा
वे शक्तिमान की आत्मा ही, हर लें भक्तों की भव बाधा
जो सकल कलाओं की प्रसविनि, सुन्दरता की वे प्रतिमा हैं
भगवान कृष्ण के मन को वे मोहित आल्हादित करती हैं
श्री राधारानी हैं प्रकाश तो भुवन भास्कर माधव हैं
ज्योत्सना रूप तो श्रीराधा, वे पूर्णचन्द्र मुरलीधर हैं
एक ही स्वरूप दोनों का है, महिमा अनन्त राधाजी की
श्रीकृष्ण कृपा जिस पर होए, अनूभूति मिले प्रियाजी की

Braj Ko Bacha Lo Mohan

गोवर्धन लीला
ब्रज को बचा लो मोहन, रक्षा करो हमारी
हो कु्रद्ध शची के पति ने, वर्षा करी है भारी
आँधी भी चल रही है, ओले बरस रहे हैं
पानी से भर गया ब्रज, सब कष्ट से घिरे हैं
गिरिराज को उखाड़ा, ले हाथ पर हरि ने
उसको उठाये रक्खा, दिन सात तक उन्होंने
ब्रज हो गया सुरक्षित, पानी उतर गया था
तब पूर्ववत प्रभु ने, गिरिराज को रखा था
श्रीकृष्ण को लगाया, हृदय से था सभी ने
और देवता लगे सब, पुष्पों की वर्षा करने

Man Madhav Ko Neku Niharhi

हरि पद प्रीति
मन माधव को नेकु निहारहि
सुनु सठ, सदा रंक के धन ज्यों, छिन छिन प्रभुहिं सँभारहि
सोभा-सील ज्ञान-गुन-मंदिर, सुन्दर परम उदारहि
रंजन संत, अखिल अघ गंजन, भंजन विषय विकारहि
जो बिनु जोग जग्य व्रत, संयम, गयो चहै भव पारहि
तो जनि ‘तुलसिदास’ निसि वासर, हरिपद कमल बिसारहि

Jiwan Ko Vyartha Ganwaya Hai

चेतावनी
जीवन को व्यर्थ गँवाया है
मिथ्या माया जाल जगत में, फिर भी क्यों भरमाया है
मारी चोंच तो रुई उड़ गई, मन में तूँ पछताया है
यह मन बसी मूर्खता कैसी, मोह जाल मन भाया है
कहे ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, मनुज जन्म जो पाया है