Jagiya Raghunath Kunwar Panchi Van Bole

प्रभाती जागिये रघुनाथ कुँवर, पँछी वन बोले चन्द्र किरन शीतल भई, चकई पिय मिलन गई त्रिविध मंद चलत पवन, पल्लव द्रुम डोले प्रात भानु प्रगट भयो, रजनी को तिमिर गयो भृंग करत गुंजगान कमलन दल खोले ब्रह्मादिक धरत ध्यान, सुर नर मुनि करत गान जागन की बेर भई, नयन पलक खोले

Jay Jay Brajraj Kunwar

रूप छटा जय जय ब्रजराज-कुँवर, राधा मन-हारी मुरलीधर मधुर अधर, जमुना तट चारी नील बरन पीत वसन, संग ग्वाल गोपीजन मुनिमन हर, मंद हँसन, गुंज-माल धारी निरतत नटवर सुवेष, सोहै सिर मोर-मुकुट हरत मदन मद असेस, गोपी-सुख-कारी

Jay Jay Brajraj Kunwar

श्रीकृष्ण चरित्र जय जय ब्रजराज कुँवर, शोभित सुखकारी मोर-मुकुट मस्तक पर, पीताम्बर धारी मुरलीधर श्याम वर्ण, जमुना तट चारी संग ग्वाल गोपीजन, ब्रजजन बलिहारी मुनि-मन-हर मंद हँसन, गुंज माल धारी नृत्यत नटवर सुवेश, सोहत बनवारी हरत मदन-मद अशेष, राधा मनहारी