Meri Shudhi Lijo He Brajraj

शरणागति मेरी सुधि लीजौ हे ब्रजराज और नहीं जग में कोउ मेरौ, तुमहिं सुधारो काज गनिका, गीध, अजामिल तारे, सबरी और गजराज ‘सूर’ पतित पावन करि कीजै, बाहँ गहे की लाज

Mhari Sudh Kripa Kar Lijo

शरणागति म्हारी सुध किरपा कर लीजो पल पल ऊभी पंथ निहारूँ, दरसण म्हाने दीजो मैं तो हूँ बहु ओगुणवाली, औगुण सब हर लीजो मैं दासी थारे चरण-कँवल की, मिल बिछड़न मत कीजो ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरि चरणाँ में लीजो