अनुरोध
कहौ तुम्ह बिनु गृह मेरो कौन काज ?
विपिन कोटि सुरपुर समान मोको, जो प्रिय परिहर् यो राज
वलकल विमल दुकूल मनोहर, कंदमूल – फल अमिय अनाज
प्रभु पद कमल विलोकहुँ छिन छिन इहितें, अधिक कहा सुख साज
हो रहौ भवन भोग लोलुप ह्वै, पति कानन कियो मुनि को साज
‘तुलसिदास’ ऐसे विरह वचन सुनि, कठिन हियो बिहरो न आज
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Mero Bhalo Kiya Ram, Apni Bhalai
उदारता
मेरो भलो कियो राम, आपनी भलाई
मैं तो साईं-द्रोही पै, सेवक- हित साईं
रामसो बड़ो है कौन, मोसो कौन छोटो
राम सो खरो है कौन, मोसो कौन खोटो
लोक कहै रामको, गुलाम हौं कहावौं
एतो बड़ो अपराध भौ न मन बावों
पाथ-माथे चढे़तृन ‘तुलसी’ ज्यों नीचो
बोरत न वारि ताहि जानि आपुसींचो
Mero Man Anat Kahan Sukh Pawe
अद्वितीय प्रेम
मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै
जैसे उड़ि जहाज को पंछी, फिरि जहाज पर आवै
कमल नैन को छाड़ि महातम और दैव को ध्यावै
परम गंग को छाड़ि पियासों, दुर्मति कूप खनावै
जिहिं मधुकर अंबुज रस चाख्यौ, क्यों करील-फल खावै
‘सूरदास’ प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै
Mero Mai Hathi Ye Bal Govinda
हठी बाल कृष्ण
मेरौ माई हठी ये बाल-गोबिंदा
अपने कर गहि गगन बतावत, खेलन माँगे चंदा
बासन मैं जल धर्यो जसोदा, हरि कौं आनि दिखावे
रूदन करत ढूँढत नहिं पावत, चंद धरनि क्यों आवे
मधु मेवा पकवान मिठाई, माँगि लेहु मेरे छौना
चकई डोरी पाट के लटकन, लेहु मेरे लाल खिलौना
संत उबारन असुर सँहारन, दूरि करन दुख दंदा
‘सूरदास’ बलि गई जसोदा, उपज्यौ कंस निकंदा
Mero Man Ram Hi Ram Rate Re
नाम की महिमा
मेरो मन रामहि राम रटै रे
राम नाम जप लीजै प्राणी, कोटिक पाप कटे रे
जनम जनम के लेख पुराने, नामहि लेत फटे रे
कनक कटोरे अमृत भरियो, पीवत कौन नटे रे
‘मीराँ’ कहे प्रभु हरि अविनासी, तन-मन ताहि पटे रे
Man Lago Mero Yar Fakiri Main
संतुष्टि
मन लागो मेरो यार फकीरी में
जो सुख पाओ राम-भजन में, सो सुख नाहिं अमीरी में
भला-बुरा सबका सुन लीजै, करि गुजरान गरीबी में
प्रेमनगर में रहनि हमारी, भलि बन गई सबूरी में
हाथ में कूँड़ी बगल में सोटा, चारो दिसा जगीरी में
आखिर यह तन खाक मिलेगा, कहाँ फिरत मगरूरी में
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, साहिब मिलै सबूरी में
Mero Man Nand Nandan Ju Haryo
श्रीकृष्ण छटा
मेरो मन नँद-नन्दन जू हर्यो
खिरक दुहावन जात रही मैं, मारग रोक रह्यो
वह रूप रसीलो ऐसो री, नित नूतन मन ही फँस्यो
वह निरख छटा अब कित जाऊँ, हिरदै में आन बस्यौ
तेहि छिन ते मोहिं कछु न सुहावै, मन मेरो लूट लियो
त्रिभुवन-सुन्दर प्रति प्रेम सखी, है अटल न जाय टर्यो