Mat Kar Moh Tu Hari Bhajan Ko Man Re

भजन महिमा मत कर मोह तू, हरि-भजन को मान रे नयन दिये दरसन करने को, श्रवण दिये सुन ज्ञान रे वदन दिया हरि गुण गाने को, हाथ दिये कर दान रे कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, कंचन निपजत खान रे

Madhav Mera Moh Mita Do

मोह मिटा दो माधव! मेरा मोह मिटा दो किया इसी ने विलग आप से, इसको नाथ हटा दो जल तरंगवत भेद न तुमसे, इसने भेद कराया इसही ने कुछ दूर-दूर रख, भव-वन में भटकाया यही मोह माया है जिसने, तुमसे विरह कराया जिसका मोह मिटा वह तुमसे निस्संदेह मिल पाया