भरत की व्यथा
जननी मैं न जीऊँ बिन राम
राम लखन सिया वन को सिधाये, राउ गये सुर धाम
कुटिल कुबुद्धि कैकेय नंदिनि, बसिये न वाके ग्राम
प्रात भये हम ही वन जैहैं, अवध नहीं कछु काम
‘तुलसी’ भरत प्रेम की महिमा, रटत निरंतर नाम
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Priti Ki Rit Na Jane Sakhi
प्रीति की रीति
प्रीति की रीत न जाने सखी, वह नन्द को नन्दन साँवरिया
वो गायें चराये यमुना तट, और मुरली मधुर बजावत है
सखियों के संग में केलि करे, दधि लूटत री वह नटवरिया
संग लेकर के वह ग्वाल बाल, मग रोकत है ब्रज नारिन को
तन से चुनरी-पट को झटके, सिर से पटके जल गागरिया
वृन्दावन की वह कुंजन में, गोपिन के संग में रास रचे
पग नुपूर की धुन बाज रही, नित नाचत है मन-मोहनिया
जो भक्तों के सर्वस्व श्याम, ब्रज में वे ही तो विहार करें
‘ब्रह्मानंद’ न कोई जान सके, वह तीनों लोक नचावनिया
Jake Priy Na Ram Vedehi
राम-पद-प्रीति
जाके प्रिय न राम वैदेही
तजिये ताहि कोटि बैरीसम, जद्यपि परम सनेही
तज्यो पिता प्रह्लाद, विभीषन बंधु, भरत महतारी
बलि गुरु तज्यो, कंत ब्रज – बनितनि, भये मुद – मंगलकारी
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लौं
अंजन कहाँ आँखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहाँ लौं
‘तुलसी’ सो सब भाँति परम हित पूज्य प्रान ते प्यारो
जासों होइ सनेह राम – पद, एतो मतो हमारो
Ajahu Na Nikase Pran Kathor
आतुरता
अजहुँ न निकसे प्राण कठोर
दरसन बिना बहुत दिन बीते, सुन्दर प्रीतम मोर
चार प्रहर, चारों युग बीते, भई निराशा घोर
अवधि गई अजहूँ नहिं आये, कतहुँ रहे चितचोर
कबहुँ नैन, मन -भर नहिं देखे, चितवन तुमरी ओर
‘दादू’ ऐसे आतुर विरहिणि, जैसे चाँद चकोर
Mohan Kahe Na Ugilow Mati
लीला
मोहन काहे न उगिलौ माटी
बार-बार अनरुचि उपजावति, महरि हाथ लिये साँटी
महतारी सौ मानत नाहीं, कपट चतुरई ठाटी
बदन उघारि दिखायौ आपनो, नाटक की परिपाटी
बड़ी बेर भई लोचन उघरे, भरम जवनिका फाटी
‘सूर’ निरखि नंदरानि भ्रमति भई, कहति न मीठी खाटी
Udho Hamen Na Shyam Viyog
प्रीति की रीति
ऊधौ! हमें न श्याम वियोग
सदा हृदय में वे ही बसते, अनुपम यह संजोग
बाहर भीतर नित्य यहाँ, मनमोहन ही तो छाये
बिन सानिध्य श्याम के हम को, कुछ भी नहीं सुहाये
तन में, मन में, इस जीवन में, केवल श्याम समाये
पल भर भी विलग नहीं वे होते, हमें रोष क्यों आये
सुनकर उद्धव के अंतर में, उमड़ पड़ा अनुराग
पड़े राधिका के चरणों में, सुध-बुध कर परित्याग
Vilag Na Mano Udho Pyare
साँवरिया श्याम
विलग न मानों ऊधो प्यारे
वह मथुरा काजर की कोठरि जे आवत ते कारे
तुम कारे सुफलत सुत कारे, कारे मधुप भँवारे
कमलनयन की कौन चलावै, साबहिनि ते अनियारे
तातें स्याम भई कालिन्दी, ‘सूर’ स्याम गुन न्यारे
Kuch Bhi Na Sath Me Jayega
नाम-जप
कुछ भी न साथ में जायेगा, अंतिम क्षण है अब दूर नहीं
ऐसे ही जीवन बीत गया, बस तेरी मेरी करके ही
शायद कुछ दिन हो अभी शेष, प्रभु क्षमा करो जो भूल हुई
जप सकूँ तुम्हारा नाम प्रभो, जो बीत गई सो बीत गई
मैं पड़ा तुम्हारे चरणों में, कहलाते तुम करुणा-सागर
हो कृपा तुम्हारा ध्यान धरूँ, हे भवभयहारी नटनागर
Shyam Moso Khelo Na Hori
होली
स्याम मोसों खेलो न होरी, पाँव पडूं कर जोरी
सगरी चुनरिया रँग न भिजाओ, इतनी सुन लो मोरी
झपट लई मोरे हाथ ते गागर, करो मती बरजोरी
दिल धड़कत मेरी साँस बढ़त है, देह कँपत रँग ढोरी
अबीर गुलाल लिपट दियो मुख पे, सारी रँग में बोरी
सास ननँद सब गारी दैहैं, आई उनकी चोरी
फाग खेल के मोहन प्यारे, क्या कीनी गति मोरी
‘सूरदास’ गोपी के मन में, आनन्द बहुत बह्यो री
Jasoda Tero Bhagya Kahyo Na Jay
यशोदा का भाग्य
जसोदा तेरो भाग्य कह्यो ना जाय
जो मूरति ब्रह्मादिक दुर्लभ, सो ही प्रगटी आय
शिव, नारद, सनकादिक, महामुनि मिलवे करत उपाय
जे नंदलाल धूरि धूसर वपु, रहत कंठ लपटाय
रतन जटित पौढ़ाय पालने, वदन देखि मुसकाय
बलिहारी मैं जाऊँ लाल पे, ‘परमानंद’ जस गाय