Bharat Bhai Kapi Se Urin Ham Nahi

कृतज्ञता
भरत भाई कपि से उऋण हम नाहीं
सौ योजन मर्याद सिन्धु की, लाँघि गयो क्षण माँही
लंका-जारि सिया सुधि लायो, गर्व नहीं मन माँही
शक्तिबाण लग्यो लछमन के, शोर भयो दल माँही
द्रोणगिरि पर्वत ले आयो, भोर होन नहीं पाई
अहिरावण की भुजा उखारी, पैठि गयो मठ माँही
जो भैया, हनुमत नहीं होते, को लावत जग माँही
आज्ञा भंग कबहुँ नहीं कीन्हीं, जहँ पठयऊँ तहँ जाई
‘तुलसिदास’, मारुतसुत महिमा, निज मुख करत बड़ाई

Koi Manushya Hai Nich Nahi

भरत-केवट मिलाप
कोई मनुष्य है नीच नहीं, भगवान भक्त हो, बड़ा वही
श्री भरत मिले केवट से तो, दोनों को ही आनन्द हुआ
मालूम हुआ केवट से ही, राघव का उससे प्रेम हुआ
तब भरत राम के जैसे ही, छाती से उसको लगा रहे
केवट को इतना हर्ष हुआ, आँखों से उसके अश्रु बहे
जाति से यद्यपि तुच्छ रहा, राघव को प्राणों सा प्यारा
फूलों की वर्षा करे देव, प्रेमानुराग सबसे न्यारा

Udho Mohi Braj Bisarat Nahi

ब्रज की याद
ऊधौ, मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं
वृंदावन गोकुल की स्मृति, सघन तृनन की छाहीं
प्रात समय माता जसुमति अरु नंद देखि सुख पावत
मीठो दधि अरु माखन रोटी, अति हित साथ खवावत
गोपी ग्वाल-बाल संग खेलत, सब दिन हँसत सिरात
‘सूरदास’ धनि धनि ब्रजबासी जिनसों हँसत ब्रजनाथ

Ganapati Gaao Re Vigan Nahi Aayega

श्री गणेश स्तुति
गणपति गाओ रे, विघन नहीं आयगा
सिद्धि सदन सुर-नर-मुनि वंदित, करता भरता रे, विघन नहीं आएगा
ब्रह्मा, विष्णु, महेश तुम्हीं हो, संकट हरता रे, विघन नहीं आयगा
कोटि सूर्य सम प्रभा तुम्हारी, बुद्धि प्रदाता रे, विघन नहीं आयगा
शंकर-सुवन, पार्वती-नंदन, आनँद मनाओ रे, विघन नहीं आयगा
जो जन सुमिरन करे तिहारो, भय नहीं पाता रे, विघन नहीं आयगा

Kahu Ke Kul Hari Nahi Vicharat

भक्त के प्रति
काहू के कुल हरि नाहिं विचारत
अविगत की गति कही न परति है, व्याध अजामिल तारत
कौन जाति अरु पाँति विदुर की, ताही के हरि आवत
भोजन करत माँगि घर उनके, राज मान मद टारत
ऐसे जनम करम के ओछे, ओछनि ते व्यौहारत
यह स्वभाव ‘सूर’ के हरि कौ, भगत-बछल मन पारत

Jab Haar Kisi Ke Hath Nahi

समदृष्टि
जय हार किसी के हाथ नहीं
जब विजय प्राप्त हो अपने को, ले श्रेय स्वयं यह ठीक नहीं
हम तो केवल कठपुतली हैं, सब कुछ ही तो प्रभु के वश में
है जीत उन्हीं के हाथों में और हार भी उनके हाथों में
जब मिलें पराजय अपयश हो, पुरुषार्थ हमारा जाय कहाँ
हो हार जीत समदृष्टि रहे, नारायण की हो कृपा वहाँ

Maiya Main Nahi Makhan Khayo

माखन चोरी
मैया मैं नहिं माखन खायौ
ख्याल परे ये सखा सबै मिलि, मेरे मुख लपटायौ
देखि तुही सींके पर भाजन, ऊँचे धरि लटकायौ
हौ जु कहत, नन्हें कर अपने, मैं कैसे करि पायौ
मुख दधि पौंछि बुद्धि इक कीन्हीं, दोना पीठि दुरायौ
डारि साट मुसकाई जसोदा, स्यामहिं कण्ठ लगायौ
बाल विनोद मोद मन मोह्यो, भक्ति प्रताप दिखायौ
‘सूरदास’ जसुमति कौ यह सुख, सिव ब्रह्म नहिं पायौ

Jivan Main Har Nahi Mane

पराजय
जीवन में हार नहीं माने
घबराये नहीं विषमता से, आती हमको वे चेताने
जो गुप्त सुप्त शक्ति हममें, उसको ही वह जागृत करने
प्रतिकूल परिस्थिति आती है, एक बार पुन: अवसर देने
जब तक ये प्राण रहे तन में, कठिनाई जीते हमें नहीं
हम आश्रय ले परमात्मा का, आखिर में जीतेंगे हम ही

Maiya Mori Main Nahi Makhan Khayo

माखन चोरी
मैया मोरी मैं नहिं माखन खायौ
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहि पठायौ
चार पहर वंशीवट भटक्यो, साँझ परे घर आयौ
मैं बालक बहियन को छोटो, छींको केहि विधि पायौ
ग्वाल-बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायौ
तू जननी मन मन की अति भोरी, इनके कहे पतियायौ
जिय तेरे कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायौ
यह लै अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहि नाच नचायौ
‘सूरदास’ तब बिहँसि यसोदा, लै उर-कंठ लगायौ

Tum Bin Pyare Kahun Sukh Nahi

स्वार्थी संसार
तुम बिन प्यारे कहुँ सुख नाहीं
भटक्यो बहुत स्वाद-रस लम्पट, ठौर ठौर जग माहीं
जित देखौं तित स्वारथ ही की निरस पुरानी बातें
अतिहि मलिन व्यवहार देखिकै, घृणा आत है तातें
जानत भले तुम्हारे बिनु सब, व्यर्थ ही बीतत सांसे
‘हरिचन्द्र’ नहीं टूटत है ये, कठिन मोह की फाँसे