Hari Ju Hamari Aur Niharo

शरणागति हरिजू! हमरी ओर निहारो भटकि रहे भव-जलनिधि माँही, पकरो हाथ हमारो मत्सर, मोह, क्रोध, लोभहु, मद, काम ग्राह ग्रसि डारो डूबन चाहत नहीं अवलम्बन, केवट कृष्ण निकारो बन पाषान परे इत उत हम, चरननि ठोकर मारो केवल किरपा प्रभु ही सहारो, नाथ न निज प्रन टारो  

Aab Tum Meri Aur Niharo

शरणागति अब तुम मेरी ओर निहारो हमरे अवगुन पै नहि जाओ, अपनो बिरुद सम्भारो जुग जुग साख तुम्हारी ऐसी, वेद पुरानन गाई पतित उधारन नाम तिहारो, यह सुन दृढ़ता आई मैं अजान तुम सम कुछ जानों, घट घट अंतरजामी मैं तो चरन तुम्हारे लागी, शरणागत के स्वामी हाथ जोरि के अरज करति हौं, अपनालो गहि […]