प्रभाती
जागिये रघुनाथ कुँवर, पँछी वन बोले
चन्द्र किरन शीतल भई, चकई पिय मिलन गई
त्रिविध मंद चलत पवन, पल्लव द्रुम डोले
प्रात भानु प्रगट भयो, रजनी को तिमिर गयो
भृंग करत गुंजगान कमलन दल खोले
ब्रह्मादिक धरत ध्यान, सुर नर मुनि करत गान
जागन की बेर भई, नयन पलक खोले
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Ja Din Man Panchi Udi Jehain
देह का गर्व
जा दिन मन पंछी उड़ि जैहैं
ता दिन तेरे तन तरुवर के, सबै पात झरि जैहैं
या देही की गरब न करियै, स्यार, काग, गिध खैहैं
‘सूरदास’ भगवंत भजन बिनु, वृथा सु जनम गँवैंहैं