Hamare Nirdhan Ke Dhan Ram

प्रबोधन हमारे निर्धन के धन राम चोर न लेत घटत नहिं कबहूँ, आवत गाढ़ैं काम जल नहिं बूड़त, अगिनि न दाहत, है ऐसो हरि नाम वैकुण्ठनाथ सकल सुख दाता, ‘सूरदास’ सुख-धाम

Ram Krishna Kahiye Uthi Bhor

राम कृष्ण चरित्र राम कृष्ण कहिये उठि भोर श्री राम तो धनुष धरे हैं, श्री कृष्ण हैं माखन चोर उनके छत्र चँवर सिंहासन, भरत, शत्रुघन, लक्ष्मण जोर इनके लकुट मुकुट पीतांबर, नित गैयन सँग नंद-किशोर उन सागर में सिला तराई, इन राख्यो गिरि नख की कोर ‘नंददास’ प्रभु सब तजि भजिए, जैसे निरखत चंद चकोर […]

Payo Ji Mhe To Ram Ratan Dhan Payo

हरि भक्ति पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो वास्तु अमोलक दी म्हाने सतगुरु, किरपा कर अपनायो जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो खरच न हौवे, चोर न लेवै, दिन दिन बढ़त सवायो सत की नाव केवटिया सतगुरु, भव-सागर तर आयो ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरख हरख जस गायो

Ram Nam Ke Do Akshar

राम नाम महिमा राम नाम के दो अक्षर, पापों का, सुनिश्चित शमन करें विश्वास और श्रद्धापूर्वक, जपले भवनिधि से पार करें हो कामकाज चलते बैठे, बस राम नाम उच्चारण हो भोगे न यातना यम की वह और परम शान्तिमय जीवन हो दो अक्षर हैं ये मन्त्रराज, जो जपे कार्य सब सफल करे देवता लोग, सब […]

Kali Nam Kam Taru Ram Ko

राम स्मरण कलि नाम कामतरु राम को दलनिहार दारिद दुकाल दुख, दोष घोर धन धाम को नाम लेत दाहिनों होत मन वाम विधाता वाम को कहत मुनीस महेस महातम, उलटे सूधे नाम को भलो लोक – परलोक तासु जाके बल ललित – ललाम को ‘तुलसी’ जग जानियत नामते, सोच न कूच मुकाम को

Mero Man Ram Hi Ram Rate Re

नाम की महिमा मेरो मन रामहि राम रटै रे राम नाम जप लीजै प्राणी, कोटिक पाप कटे रे जनम जनम के लेख पुराने, नामहि लेत फटे रे कनक कटोरे अमृत भरियो, पीवत कौन नटे रे ‘मीराँ’ कहे प्रभु हरि अविनासी, तन-मन ताहि पटे रे

Ram Sumir Ram Sumir

माया राम सुमिर, राम सुमिर, यही तेरो काज रे माया को संग त्याग, प्रभुजी की शरण लाग मिथ्या संसार सुख, झूठो सब साज रे सपने में धन कमाय, ता पर तूँ करत मान बालू की भीत जैसे, दुनिया को साज रे ‘नानक’ जन कहत बात, बिनसत है तेरो गात छिन-छिन पर गयो काल, तैसे जात […]

Janani Main Na Jiu Bin Ram

भरत की व्यथा जननी मैं न जीऊँ बिन राम राम लखन सिया वन को सिधाये, राउ गये सुर धाम कुटिल कुबुद्धि कैकेय नंदिनि, बसिये न वाके ग्राम प्रात भये हम ही वन जैहैं, अवध नहीं कछु काम ‘तुलसी’ भरत प्रेम की महिमा, रटत निरंतर नाम

Ram Nam Ras Pije Manua

श्याम का रंग राम-नाम रस पीजै, मनुआ! राम-नाम रस पीजै ताज कुसंग, सत्संग बैठ नित, हरि-चर्चा सुन लीजै काम, क्रोध, मद लोभ, मोह कूँ बहा चित्त से दीजै ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, ताहि के रंग में भीजै

Re Man Ram So Kar Preet

श्री राम भजो रे मन राम सों कर प्रीत श्रवण गोविंद गुण सुनो, अरु गा तू रसना गीत साधु-संगत, हरि स्मरण से होय पतित पुनीत काल-सर्प सिर पे मँडराये, मुख पसारे भीत आजकल में तोहि ग्रसिहै, समझ राखौ चीत कहे ‘नानक’ राम भजले, जात अवसर बीत