रामाश्रय
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे
काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे
कौनहुँ देव बड़ाइ विरद हित, हठि हठि अधम उधारे
खग मृग व्याध, पषान, विटप जड़यवन कवन सुर तारे
देव दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब माया-विवश बिचारे
तिनके हाथ दास ‘तुलसी’ प्रभु, कहा अपुनपौ हारे
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Tumhare Kaaran Sab Sukh Chodya
विरह व्यथा
तुम्हरे कारण सब सुख छोड्यो, अब मोहि क्यूँ तरसावो
बिरह व्यथा लागी उर अंदर, सो तुम आय बुझावो
अब छोड्याँ नहिं बनै प्रभूजी, हँस कर तुरत बुलाओ
‘मीराँ’ दासी जनम जनम की, अंग सूँ अंग लगाओ
Bhagwan Tumhare Mandir Main
प्रभु दर्शन
भगवान् तुम्हारे मंदिर मैं, मैं दर्शन करने आई हूँ
वाणी में तो माधुर्य नहीं, पर स्तुति करने आई हूँ
मैं हूँ दरिद्र अति दीन दुखी, कुछ नहीं भेंट है देने को
नयनों में केवल अश्रु बचे, चरणों की पूजा करने को
हे नाथ मेरे, मैं तो अनाथ, करुणानिधि मुझ पर कृपा करो
मैं नाम आपका नित्य जपूँ, सद्बुद्धि मुझे प्रदान करो