माधव की मोहिनी
आजु इन नयनन्हि निरखे स्याम
निकसे ह्वै मेरे मारग तैं, नव नटवर अभिराम
मो तन देखि मधुर मुसकाने, मोहन-दृष्टि ललाम
ताही छिनते भए तिनहिं के, तन-मन-मति-धन-धाम
हौं बिनु मोल बिकी तिन चरनन्हि, रह्यौ न जग कछु काम
माधव-पद-पंकज मैं पायौ, मन मधुकर विश्राम

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