Ab To Pragat Bhai Jag Jani

प्रेमानुभूति
अब तो पगट भई जग जानी
वा मोहन सों प्रीति निरंतर, क्यों निबहेगी छानी
कहा करौं वह सुंदर मूरति, नयननि माँझि समानी
निकसत नाहिं बहुत पचिहारी, रोम-रोम उरझानी
अब कैसे निर्वारि जाति है, मिल्यो दूध ज्यौं पानी
‘सूरदास’ प्रभु अंतरजामी, उर अंतर की जानी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *