आतुरता
अजहुँ न निकसे प्राण कठोर
दरसन बिना बहुत दिन बीते, सुन्दर प्रीतम मोर
चार प्रहर, चारों युग बीते, भई निराशा घोर
अवधि गई अजहूँ नहिं आये, कतहुँ रहे चितचोर
कबहुँ नैन, मन -भर नहिं देखे, चितवन तुमरी ओर
‘दादू’ ऐसे आतुर विरहिणि, जैसे चाँद चकोर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *