अन्तरवृत्ति
अन्तर्यामी को पहचानो मन में होय उजेरा
क्रोध लोभ मद अहंकार ने, मानव जीवन घेरा
हुए मोह से ग्रस्त सभी जन, छाया घना अँधेरा
यौवन बीता, समय जा रहा, किन्तु विवेक न जागा
जिसने संग किया संतों का, तमस हृदय का भागा

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