अनासक्ति
अपने को सुखी बनायें हम
कामना पूर्ति जब नहीं होती, तत्काल क्रोध तब आ जाता
जब खो देते विवेक तभी, संतुलन नहीं तब रह पाता
हम अनासक्त हो कर्म करें, तो अहम् भाव ही मिट जाये
प्रभु के हित होए कार्य तभी, कर्तापन भाव न रह पाये
होए सहिष्णुता प्रेम भाव, ईर्ष्या व द्वेष नहीं शेष रहे
संगीत, कला, स्वाध्याय भी हो, जीवन में आनंदस्रोत बहे

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