ब्रह्माजी का भ्रम
भगवान् कृष्णलीलामृत का, हम तन्मय होकर पान करें
ब्रह्मा तक समझ नहीं पाये, उन सर्वात्मा का ध्यान धरें
यमुनाजी का रमणीय-पुलीन, जहाँ ग्वाल बाल भी सँग में हैं
मंडलाकार आसीन हुए, भगवान् बीच में शोभित हैं
बछड़े चरते थे हरी घास, मंडली मग्न थी भोजन में
भगवान कृष्ण की लीला से, ब्रह्मा भी पड़े अचम्भे में
मौका पाकर के ब्रह्मा ने, अन्यत्र छिपाया बछड़ों को
दधि-भात-कौर को हाथ लिये, श्रीकृष्ण ढूँढते तब उनको
अवसर का लाभ उठा ब्रह्मा ने, ग्वाल बाल भी छिपा दिये
खिलवाड़ चला यह एक वर्ष, कोई न समझ इसको पाये
ब्रह्माजी को जब ज्ञान हुआ, गिर पड़े प्रभु के चरणों में
तन मन उनका रोमांचित था, अरु अश्रु भरे थे नैनों में

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