नश्वर संसार
भज मन चरण-कमल अविनासी
जे तई दीसे धरण गगन बिच, ते तई सब उठ जासी
कहा भयो तीरथ व्रत कीन्हें, कहा लिए करवत कासी
या देही को गरब न करियो, माटी में मिल जासी
यो संसार चहर की बाजी, साँझ पड्या उठ जासी
कहा भयो भगवाँ का पहर्या, घर तज के सन्यासी
जोगी होय जुगति नहिं जाणी, उलट जनम फिर आसी
अरज करे अबला कर जोरे, स्याम तुम्हारी दासी
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, काटो जम की फाँसी

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