प्रेम के भूखे
भूख लगी है मोहन प्यारे
यज्ञ करे मथुरा में ब्राह्मण, जाओ उनके द्वारे
हाँ ना कुछ भी कहे न द्विज तो, चाह स्वर्ग की मन में
ग्वाल-बाल सब भूखे ही लोटे, घोर निराशा उन में
बोले हरि यों आस न छोड़ों अनुचित है यह राह
यज्ञ-पत्नियाँ जो कि वहाँ है, पूर्ण करेंगी चाह
भोजन की रुचिकर सामग्री लिये शीघ्र वे आई
सोचा ये सौभाग्य श्याम से मिलने को अकुलाई
यज्ञ-भोक्ता श्रीकृष्ण तो, हों प्रसन्न भक्ति से
पूर्ण हुआ संकल्प तुम्हारा, कहा श्याम ने उनसे  

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