द्रोपदी का विलाप
बिन काज आज महाराज लाज गई मेरी
दुख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी
दुःशासन वंश कठोर, महा दुखदाई
खैंचत वह मेरो चीर लाज नहिं आई
अब भयो धर्म को नास, पाप रह्यो छाई
यह देख सभा की ओर नारि बिलखाई
शकुनि दुर्योधन, कर्ण खड़े खल घेरी
दुख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी
तुम दीनन की सुध लेत देवकी-नन्दन
महिमा अनन्त भगवन्त भक्त-भय भंजन
तुम कियो सिया दुख दूर शम्भु-धनु खण्डन
अति आर्ति-हरण गोपाल मुनिन मन-रंजन
करुणानिधान भगवान करी क्यों देरी
दुख हरो द्वारिकानाथ शरण में तेरी
बैठा जहाँ राज समाज, नीति सब खोई
नहिं कहत धर्म की बात सभा में कोई
पाँचो पति बैठे मौन कौन गति होई
ले नन्दनँदन को नाम द्रोपदी रोई
करि करि विलाप सन्ताप सभा में हेरी
दुख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी
तुम सुनी गजेन्द्र की टेर, विष्णु अनिवासी
ग्रह मारि छुड़ायो बन्दि काटि पग फाँसी
मै जपूँ तुम्हारो नाम द्वारिका वासी
अब काहे राज समाज करावत हाँसी
अब कृपा करो यदुनाथ जान चित चेरी
दुख हरो द्वारिकानाथ शरण में तेरी

13 Responses

  1. एक दिन अचानक बचपन की स्मृतियों यह भजन याद आ गया। और आपकी website पर यह लिखा हुआ मिला।
    मन हर्षित हो गया। आपको कोटिशः धन्यवाद। जय श्री राम जय श्री कृष्णा।

  2. निःसंदेह बहुत सुंदर भावपूर्ण शब्द योजना है।
    बहुत साधुवाद!!
    जय श्री राधा माधव!!🌹🌹

Leave a Reply to Hari Prem Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *