बालकृष्ण
चल रहे बकैयाँ मनमोहन, सन गये धूल में जो सोहन
जब नहीं दिखी मैया उनको किलकारी मारे बार बार
माँ निकट रसोईघर में थी, गोदी में लेकर किया प्यार
आँचल से अंगों को पोछा और दूध पिलाने लगी उन्हें
क्षीरोदधि में जो शयन करें, विश्वम्भर कहते शास्त्र जिन्हें

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