वियोग
दोउ सुत गोकुल नायक मेरे
काहे नंद छाँड़ि तुम आये, प्रान जीवन सबके रे
तिनके जात बहुत दुख पायो, शोक भयो ब्रज में रे
गोसुत गाय फिरत चहूँ दिसि में, करे चरित नहिं थोरे
प्रीति न करी राम दसरथ की, प्रान तजे बिन हेरे
‘सूर’ नन्द सों कहति जसोदा, प्रबल पाप सब मेरे

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