प्रबोधन
हमारे निर्धन के धन राम
चोर न लेत घटत नहिं कबहूँ, आवत गाढ़ैं काम
जल नहिं बूड़त, अगिनि न दाहत, है ऐसो हरि नाम
वैकुण्ठनाथ सकल सुख दाता, ‘सूरदास’ सुख-धाम

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