मथुरा प्रवास
जा रहे प्राणधन मथुरा को
राधा रानी हो रही व्यथित, सूझे कुछ भी नहीं उनको
अंग अंग हो रहे शिथिल, और नीर भरा नयनों में
आर्त देख राधा को प्रियतम, स्वयं दुःखी है मन में
प्रिया और प्यारे दोनों की, व्याकुल स्थिति ऐसी
दिव्य प्रेम रस की यह महिमा, उपमा कहीं न वैसी

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