विरह व्यथा
जब गये श्याम मथुरा ऊधो, तब से गोकुल को भूल गये
यो कहते नन्द यशोदा के, आँखों से आँसू छलक गये
वह सुघड़ वेष कटि पीताम्बर, मुख कमल नित्य ही स्मरण करे
संग ग्वाल सखा, वंशी वादन, वृन्दावन में लाला विचरे
इस तरह नित्य मैया बाबा, सुत स्नेह लहर में थे बहते
स्तन से दूध प्रवाहित हो, इस विरह कहानी को कहते
भोली-भाली ब्रज बालायें भी, फूट फूट कर थीं रोतीं
विस्मृत न हुए वो निर्मोंही, उन्मत्त दशा इनकी होती
देकर अधारमृत प्यारे ने संतुष्ट किया था उन सबको
चित चुरा लिया उस कपटी ने, वे भूल नहीं सकती उसको
उन्मुक्त हँसी वह आलिंगन, रस महारास की क्रीड़ा में
रजनी भी शरद् पूर्णिमा की, जब रमण किया उनके संग में
वे पुनर्मिलन की आशा में, प्राणों को धारण करती थीं
हों लीन विरह की लीला में, इस भाँति बिलखती रहती थीं

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