प्रबोधन
जगत् में झूठी देखी प्रीत
अपने ही सुख से, सब लागे, क्या दारा क्या मीत
मेरो मेरो सभी कहत है, हित सौं बाँध्यो चीत
अन्तकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत
मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत यह कैसी है नीत
‘नानक’ भव-जल पार परै, जो गावै प्रभु के गीत

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