मोह माया
जनम धोखे में खोय दयो
बारह बरस बालपन बीते, बीस में युवा भयो
तीन बरस के अंत में जाग्यो, बाढ्यो मोह नयो
धन और धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो
बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खात लह्यो
बरस साठ सत्तर के ऊपर, केस सफ़ेद भयो
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, जीवन वृथा गयो

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