वियोग
कहापरदेसी कौ पतियारौ
प्रीति बढ़ाई चले मधुबन कौ, बिछुरि दियौ दुख भारौ
ज्यों जल-हीन मीन तरफत त्यौं, व्याकुल प्राण हमारौ
‘सूरदास’ प्रभु गति या ब्रज की, दीपक बिनु अँधियारौ

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